सांभळी नथी. शब्दो भले काने पडया, पण अंतरमां शुद्धात्मानी रुचि करीने तेने
लक्षमां लीधो नहि माटे तेनी वात पण सांभळी नथी–एम कह्युं. हवे ए ज वातने
सूलटावीने कहीए तो, जाणे शुद्ध आत्माने लक्षमां लीधो छे ते जीवो परमार्थे शुद्ध
आत्मा सिवाय बीजी वात सांभळता ज नथी; ज्ञानीओ खरेखर काम–भोग–बंधननी
कथा सांभळतां ज नथी केम के तेमां एकताबुद्धि थती नथी; शुद्धात्मामां ज एकताबुद्धि
होवाथी तेनुं ज श्रवण करी रह्या छे.
एकत्व–विभक्त आत्मानुं श्रवण करे छे. तेमना भावश्रुतनुं परिणमन आत्मामां
एकत्व–पणे ज थई रह्युं छे, तेथी निमित्त तरीके द्रव्य श्रवण पण तेवुं ज गण्युं छे.
अने अज्ञानी तो काम–भोग–बंधनना भावो साथे ज एकत्वपणे परिणमी रह्यो छे
तेथी ते तेवी ज कथा सांभळे छे–एम कहेवामां आव्युं छे. श्री तीर्थंकर भगवाननी
सभामां बेठो होय अने दिव्य ध्वनि काने पडतो होय ते वखते पण ते अज्ञानी जीव
काम–भोग–बंधननी विकथा ज सांभळी रह्यो छे, केमके उपादानमां जेवुं परिणमन
होय तेवो निमित्तमां आरोप आवे. शब्दो तो जड छे तेमां कांई ‘विकथा’ के ‘सुकथा’
नथी. पण ज्यां उपादानमां ऊंधुंं परिणमन होय त्यां निमित्त तरीके श्रवणने ‘विकथा’
कीधी. अज्ञानीने जे कथा विषय–कषायपोषक थाय छे ते ज कथा ज्ञानीने वैराग्यपोषक
थाय छे. कथाना शब्दो एक ज होवा छतां एक जीव पोताना ऊंधा उपादानने लीधे
तेने विषयकषायनुं निमित्त बनावे छे एटले तेने माटे ते विकथा छे, अने बीजो जीव
पोताना सघळा उपादानने लीधे तेने ज वैराग्यनुं निमित्त बनावे छे एटले तेने माटे
ते विकथा नथी.
कथा सांभळनारा ज्ञानी अने अज्ञानी बंनेने सरखा परिणाम थवा जोईए, पण तेम
बनतुं नथी. आथी नक्की थाय छे के जेवुं निमित्त होय तेवुं उपादान थाय–एवो
सिद्धांत नथी, पण जेवुं उपादान होय तेवुं निमित्त होय छे–एम समजवुं.