Atmadharma magazine - Ank 102
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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Atmadharm Regd. No. B. 4787
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‘–दर्शावुं तो करजो प्रमाण’
(अनंत ज्ञानीओना अभिप्रायनी एकता)
‘हुं एकत्व–विभक्त आत्माने देखाडुं छुं’ एम कहीने पछी आचार्यदेव कहे छे के ‘जो हुं
शुद्धात्मा देखाडुं तो ते प्रमाण करजो.’ वर्तमानमां तो हुं देखाडनार छुं अने भविष्यमां आ
समयसार द्वारा बीजा कोई संतो शुद्धात्मा देखाडे तो ते पण हुं ज देखाडुं छुं–एम गणीने ते प्रमाण
करजो, केमके भाव अपेक्षाए अमारी एकता छे. भविष्यमां य शुद्धात्मा देखाडवामां आ शास्त्रना
एकला अक्षरो ज निमित्त नहि थाय पण कोई चेतनवंत साक्षात् संभळावनार ज्ञानी पुरुष ज
निमित्त हशे–एम पण आमां आवी जाय छे. शास्त्र पोते पोताना भाव नहि समजावे पण ज्ञानी
आत्मा तेना भाव समजावशे. कोई एम माने के ‘कदी पण ज्ञानीनुं निमित्त मळ्‌या वगर हुं मारी
मेळे शास्त्र वांचीने आत्मज्ञान पामी गयो’–तो ते मिथ्याद्रष्टि अने स्वछंदी छे.
आचार्यभगवान कहे छे के वर्तमानमां तो हुं पोते आ समयसार द्वारा शुद्धात्मा देखाडुं छुं ते
सांभळनारा प्रमाण करजो, अने भविष्यमां बीजा ज्ञानी आ समयसार द्वारा शुद्धात्मा दर्शावे तो ते
वखते पण ‘अभिप्राय अपेक्षाए एकता होवाथी’ ते हुं ज दर्शावुं छुं–एम समजीने श्रोताओ ते
प्रमाण करजो. मारो जे भाव छे ते कोई ज्ञानी ज्यारे ज्यारे हजारो वर्षे भविष्यमां संभळावे त्यारे
त्यारे ते सांभळनारा तेने प्रमाण करजो. मारे जेवो शुद्ध आत्मा दर्शाववो छे तेवो शुद्ध आत्मा
भविष्यमां कोई बीजा ज्ञानी दर्शावे, तो ते वखते कहेनारना भेदथी भेद न पाडवो पण भाव
अपेक्षाए एकता छे तेथी ते प्रमाण करजो.
हुं मारा समस्त निजवैभवथी एकत्व–विभक्त आत्मा दर्शावुं छुं, मारे शुद्ध आत्मा ज
दर्शाववो छे अने तमे पण तमारा स्वानुभवथी तेने प्रमाण करजो; वच्चे बीजुं कथन आवे तो तेना
उपर मारी मुख्यता नथी अने तमे पण तेनी मुख्यता न करतां शुद्ध आत्माने ज ग्रहण करजो.
वर्तमानकाळना श्रोता के भविष्यकाळना श्रोता ते बधाने आ वात लागु पडे छे. वर्तमानमां आ
समयसारमां हुं जे एकत्वस्वभाव कहेवा मांगुं छुं ते वर्तमानमां तमे प्रमाण करजो, तेम ज ज्यारे
ज्यारे कोई ज्ञानी–संतो भविष्यमां पण आत्मानो एकत्व स्वभाव कहेनारा मळे त्यारे त्यारे ते
सांभळनारा प्रमाण करजो–आम आचार्यदेवे ठेठ सुधी संधि करी छे; केम के अभिप्राय अपेक्षाए
एकता छे माटे जे एक ज्ञानी कहे छे ते सर्वे ज्ञानी कहे छे. एक ज्ञानीए एक प्रकारनो शुद्ध आत्मा
बताव्यो ने बीजा ज्ञानी बीजा प्रकारनो शुद्ध आत्मा बतावे–एम नथी, बधाय ज्ञानीओनो भाव
सरखो ज छे.
जुओ, आमां श्री कुंदकुंद भगवान साथे बधा–ज्ञानीओना अभिप्रायनी संधि थई जाय छे.
ज्यारे जे कोई ज्ञानी शुद्धात्मा बतावे ते ज कुंदकुंदाचार्यदेवे बताव्यो छे. अने कुंदकुंदाचार्यदेवे जे
शुद्धात्मा बताव्यो छे ते ज बधा ज्ञानीओ दर्शावे छे. आ रीते, एक ज्ञानी जे शुद्धात्मा कहे छे ते श्री
कुंदकुंदाचार्यदेव ज कहे छे केम के भाव अपेक्षाए बधा ज्ञानीनी एकता छे. माटे ज्ञानी जे शुद्धात्मा
कहेवा मांगे छे तेने अंतरनी आत्मसाक्षी वडे प्रमाण करजो.–‘जो दर्शावुं तो करजो प्रमाण’ एमांथी
आवुं रहस्य नीकळे छे.
–श्री सीमंधरप्रभुनी भक्ति प्रसंगे समयसार गा. प उपर पू. गुरुदेवश्रीने स्फूरेल उपायो.
२४७६ः अषाड सुद ३ ना प्रवचनमांथी
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प्रकाशकः–श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली)
मुद्रकः–रवाणी एन्ड कंपनी वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, अनेकान्त मुद्रणालयः मोटा आंकडिया, ताः २६–३–प२