Atmadharma magazine - Ank 103
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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वैशाखसंपादकवर्ष नवमुं
रामजी माणेकचंद दोशी
२४७८वकीलअंकः ७
‘मंगल वधाई’
अहा......धन्य ते वैशाख सुद बीज.....अने
धन्य ते उमराळा नगरी...... के ज्यां माता
उजमबाए श्री कहानकुंवर जेवा धर्मरत्नने जन्म
आपीने भारतना अनाथ आत्मार्थीओने सनाथ
कर्या.......ए मंगल जन्मनी आजे ६३ मी वधाई छे.
आखुं भारत जाणे के भूलुं पडी गयुं हतुं–एवा
समये, भूला पडेला आत्मार्थी जीवोनो उद्धार करवा
पूज्य गुरुदेवश्री पधार्या.....अने श्री तीर्थंकरोना
अप्रतिहत मुक्तिमार्गमां स्वयं निःशंकपणे विचरता
थका आत्मार्थी जीवोने पण ए मुक्तिमार्गे दोरी रह्या
छे के अरे मोक्षार्थी जीवो! तीर्थंकर भगवंतो जे मार्गे
मुक्त थया ते मार्ग आ ज छे.........आ सिवाय बीजो
कोई मुक्तिनो मार्ग छे ज नहि......तमे निःशंकपणे
आ मार्गे चाल्या आवो.
छुटक नकल१०३वार्षिक लवाजम
शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
चार आनात्रण रूपिया