Atmadharma magazine - Ank 103
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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Atmadharm Regd. No. B. 4787
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परमात्म भावना
सौराष्ट्रना तीर्थराज गीरनारजी उपर
श्री नेमनाथ प्रभुना त्रण कल्याणक थया छे.
गीरनारजी सहस्रावनमां भगवाननो दीक्षा
कल्याणक थयो, गीरनार उपर ज भगवान
केवळज्ञान पाम्या अने गीरनारनी पांचमी
टूंकेथी भगवाने सिद्धगमन कर्युं. आ रीते
भगवानना त्रण कल्याणकोथी पावन थयेला
श्री गीरनारजी तीर्थनी यात्रा माटे वीर सं.
२४६६ मां पूज्य गुरुदेवश्री संघसहित पधार्या
हता. ते वखते ए गिरिराजनी पांचमी टूंके–
निर्वाणभूमि स्थानमां दोढ कलाक सुधी भक्ति
चाली हती; तेमां श्री गुरुदेवश्रीए
अध्यात्मभावनामां मस्त बनीने ‘हुं एक शुद्ध
सदा अरूपी.......ज्ञान दर्शनमय खरे’ इत्यादि
धून गवडावी हती अने भक्तो ते झीलता
हता. अहो! ए गिरिराजनी टोच उपर जामी
गयेली धून, अने ते वखतनुं शांत
आध्यात्मिक वातावरण..... एनां स्मरणो हजी
पण भक्तजनोना हैयामां गूंजी रह्या छे.
गया वर्षे मागसर सुद बारसना रोज
सवारमां ए गाथानुं फरी फरी रटण करतां पू.
गुरुदेवश्रीए कह्युं के आ गाथा गीरनारनी
टोच उपर बोलाणी हती. ज्यांथी श्री नेमनाथ प्रभु परमात्मदशाने पाम्या त्यां ज आ ‘परमात्मभावना’ नी
धून गवडावी हती जुओ तो खरा.....परमात्मभावना...!
गीरनारनी टोच उपर....शुद्धात्मानी धून
‘हुं एक शुद्ध सदा अरूपी ज्ञानदर्शनमय खरे
कंई अन्य ते मारुं जरी परमाणु मात्र नथी अरे’
‘परमात्मा’ मां ‘परमाणु’ नथी, परमाणु मा परमात्मा नथी. ‘हुं’ मां ‘तुं’ नथी....‘एक’ मां
अनेकता नथी.....‘शुद्ध’ मां अशुद्धता नथी. ‘सदा अरूपी’ मां कदी रूपीपणुं नथी.....‘ज्ञानदर्शनमय’ मां जरा
पण अचेतनपणुं नथी. ‘कंई अन्य जरापण–परमाणुमात्र मारुं नथी’ एटले के निज स्वभावथी ज पोतानी
पूर्णता छे. एक बाजु पोते चैतन्य परम–आत्मा अने बीजी बाजु अचेतन परम–अणु.
अहो! आवा परमात्माने ओळखीने तेनी भावना करवा जेवी छे.
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प्रकाशकः श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली)
मुद्रकः–रवाणी एन्ड कंपनी वती जमनादास माणेकचंद रवाणी अनेकान्त मुद्रणालयः मोटा आंकडिया, ता. २प–४–प२