Atmadharma magazine - Ank 104
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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Atmadharm Regd. No. B. 4787
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धर्म
(‘दुर्गतिमां पडतां बचावे तेनुं नाम धर्म’)
र्म एटले शुं?
‘धारी राखे ते धर्म’ एटले के आत्माने पोताना शुद्ध
चैतन्यस्वरूपमां धारी राखवो ने विकारमां न जवा देवो तेनुं नाम धर्म छे.
अथवा ‘दुर्गतिमां पडतां बचावे ते धर्म छे.’ त्यां ‘दुर्गति’ कहेतां नरक
अने तिर्यंच गति ज न समजवी, पण संसारनी चारेय गति ते दुर्गति छे,
ने मोक्षगति ते ज खरेखर सुगति छे. जे भावथी आत्माने संसारनी चार
गतिमां रखडवुं पडे ते भाव दुर्गति छे. दुर्गतिनो अर्थ आ प्रमाणे थाय छेः
दुः एटले भूंडुं अने ‘गति’ एटले परिणमन; मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान अने
मिथ्याचारित्ररूप परिणमनथी जीवने चार गतिमां परिभ्रमण थाय छे तेथी
खरेखर ते मिथ्यादर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे भूंडुं–विकारी परिणमन ते ज
दुर्गति छे. ते मिथ्यादर्शन वगेरे विकारी परिणमनथी आत्मानो जे उद्धार
करे तेनुं नाम धर्म छे. शुद्ध आत्मस्वभावना आश्रयथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्ररूप निर्मळ परिणमन थतां मिथ्यादर्शनादिरूप भूंडुं परिणमन थतुं
नथी, तेथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज धर्म छे, अने ते ज खरेखर
सुगति एटले के मोक्षनुं कारण छे. आ रीते खरेखर बहारमां आत्मानी
सुगति के दुर्गति नथी; पण आत्माना जे परिणमनथी भवभ्रमण थाय ते
ज आत्मानी दुर्गति छे अने आत्माना जे परिणमनथी मोक्षदशा प्रगटे ते
ज आत्मानी सुगति छे.
जेने शुद्ध आत्म स्वभावनुं भान नथी अने पुण्यमां धर्म माने छे
एवा अज्ञानी जीवोने एम लागे छे के स्वर्ग ते सुगति छे अने नरक ते ज
दुर्गति छे. पण ज्ञानी तो जाणे छे के मोक्षदशा ए ज सुगति छे, ने नरक के
स्वर्ग वगेरे चारेय गति दुर्गति छे. जे भावे स्वर्गनो भव करवो पडे ते
पुण्यभाव पण विकार होवाथी खरेखर दुर्गति छे. शुद्ध स्वभावना आश्रये
जेटलुं शुद्ध परिणमन थयुं ते ज सुगति छे. खरेखरी सुगति ते ज कहेवाय के
जे पाम्या पछी फरीने कदी संसारमां अवतरवुं न पडे. एटले मोक्षदशानी
प्राप्ति ते ज खरी सुगति छे.
(वीर सं. २४७६ अषाड वद ९ः प्रवचनमांथी)
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प्रकाशकः– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली)
मुद्रकः–रवाणी एन्ड कंपनी वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, अनेकान्त मुद्रणालयः मोटा आंकडिया, ता. २४–प–प२