
‘धारी राखे ते धर्म’ एटले के आत्माने पोताना शुद्ध
अथवा ‘दुर्गतिमां पडतां बचावे ते धर्म छे.’ त्यां ‘दुर्गति’ कहेतां नरक
ने मोक्षगति ते ज खरेखर सुगति छे. जे भावथी आत्माने संसारनी चार
गतिमां रखडवुं पडे ते भाव दुर्गति छे. दुर्गतिनो अर्थ आ प्रमाणे थाय छेः
मिथ्याचारित्ररूप परिणमनथी जीवने चार गतिमां परिभ्रमण थाय छे तेथी
खरेखर ते मिथ्यादर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे भूंडुं–विकारी परिणमन ते ज
करे तेनुं नाम धर्म छे. शुद्ध आत्मस्वभावना आश्रयथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्ररूप निर्मळ परिणमन थतां मिथ्यादर्शनादिरूप भूंडुं परिणमन थतुं
सुगति एटले के मोक्षनुं कारण छे. आ रीते खरेखर बहारमां आत्मानी
सुगति के दुर्गति नथी; पण आत्माना जे परिणमनथी भवभ्रमण थाय ते
ज आत्मानी सुगति छे.
दुर्गति छे. पण ज्ञानी तो जाणे छे के मोक्षदशा ए ज सुगति छे, ने नरक के
स्वर्ग वगेरे चारेय गति दुर्गति छे. जे भावे स्वर्गनो भव करवो पडे ते
जेटलुं शुद्ध परिणमन थयुं ते ज सुगति छे. खरेखरी सुगति ते ज कहेवाय के
जे पाम्या पछी फरीने कदी संसारमां अवतरवुं न पडे. एटले मोक्षदशानी
मुद्रकः–रवाणी एन्ड कंपनी वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, अनेकान्त मुद्रणालयः मोटा आंकडिया, ता. २४–प–प२