Atmadharma magazine - Ank 104
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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पोरबंदरमां श्री जिनमंदिरनुं खातमुहुर्त
पू. गुरुदेवश्रीना पुनित प्रभावे सौराष्ट्र देशमां ठेर ठेर वीतरागी जिनमंदिरो थया छे ने थता जाय छे.
पोरबंदरमां पण एक जिनमंदिर थवानुं छे, तेनुं खात मुहूर्त वैशाख सुद १३ ने बुधवारे सवारे नव वागे थयुं हतुं.
आ प्रसंगे शेठश्री नेमिदास खुशालभाईना मकानेथी सौ भाई–बेनो वाजते–गाजते नीकळीने, बजारमां थई,
‘जुनी तिजोरी’ ना नामथी ओळखाता मकाने आव्या हता अने त्यां सेंकडो माणसोनी हाजरीमां उल्लासपूर्वक
खातमुहुर्तविधि थई हती. पूजनादि बाद शेठ श्री खीमचंद जेठालाल तथा तेमना धर्मपत्नी जयाकुंवर बेनना सुहस्ते
श्री जिनमंदिरनुं खातमुहूर्त थयुं हतुं. आ प्रसंगे पोतानो उल्लास व्यक्त करतां शेठश्री नेमिदासभाईए जणाव्युं हतुं
के ‘अहो! पोरबंदरना आंगणे भगवान पधारे ते आपणुं अहोभाग्य छे!’ शेठ श्री खीमचंदभाईए पण
खातमुहुर्त संबंधी प्रसंगोचित भाषण कर्युं हतुं, अने आवुं मंगलकार्य करवानुं सौभाग्य पोताने प्राप्त थयुं ते बदल
पोतानो प्रमोद अने उल्लास व्यक्त करीने, पोताना तरफथी रूा. प००१) श्री पोरबंदर जिनमंदिरने आपवानी उदार
जाहेरात करी हती; तेमज पोरबंदरना श्री झीणीबेने एक प्रतिमाजी माटे रूा. प०१ आपवानुं जाहेर कर्युं हतुं.
–पोरबंदरमां आ मंगलकार्यनी शरूआत करवा माटे त्यांना शेठश्री नेमिदासभाई वगेरे मुमुक्षुओने धन्यवाद!
श्री जैन–विद्यार्थी गृह सोनगढ
अहीं जे जैन–विद्यार्थीगृह शरू करवामां आव्युं छे तेना तात्कालिक खर्चने पहोंची वळवा माटे एक
कामचलाउ फंड एकठुं करवामां आव्युं छे तेमां नीचेनी रकमो मळी छे.
१०००) श्री काळिदास राघवजी जसाणी, राजकोट
प००) श्री जेठालाल हंसराजनां मातुश्री, मोरबी
प००) श्री नेमीदास खुशालदास, पोरबंदर२प०) श्री फुलचंद चतुरभाई, सुरेन्द्रनगर
प००) श्री मोहनलाल वाघजीभाई, करांचीवाळा१००) श्री नानचंद भगवानजी खारा, अमरेली
प००) श्री खीमचंद जेठालाल, राजकोटकुल रूा. ३३प० फंड चालु छे.
उपरोक्त विद्यार्थीगृहमां दाखल थवा ईच्छनारे नीचेना सरनामे वेळासर अरजी मोकली आपवी.
अहींनी गुरुकुळ हाईस्कूल तां. १६–६–प२ ना रोज खुलवानी छे.
मोहनलाल काळिदास जसाणी.
नेमीदास खुशालदास
मंत्रीओ, श्री जैन–विद्यार्थीगृह सोनगढ
श्री जैन दर्शन शिक्षणवर्ग
श्री जैनदर्शन शिक्षणवर्ग उत्साहपूर्वक चाली रह्यो छे; वर्गमां त्रण विभागो पाडवामां आव्या छे. एकंदर
१४० जेटला विधार्थीओ वर्गमां दाखल थया छे, ए उपरांत बीजा मोटी उमरना पण अनेक जिज्ञासु भाईओ
वर्गनो लाभ ले छे.
द्रव्यद्रष्टि ते ज सम्यग्द्रष्टि’
‘द्रव्यद्रष्टि ते सम्यग्द्रष्टि छे’ ‘पर्यायमूढ ते परसमय छे.’
जेनी द्रष्टि शुद्ध द्रव्य उपर छे ते सम्यग्द्रष्टि छे; अने जे एकली पर्यायने लक्षमां लईने तेने ज आखुं
आत्मस्वरूप माने छे ते पर्यायमूढ मिथ्याद्रष्टि छे.
द्रव्यद्रष्टिनो विषय शुं छे अने पर्यायद्रष्टिनो विषय शुं छे?
द्रव्यद्रष्टिनो विषय–द्रव्य, शुद्ध, अभेद, प्रधान, निश्चय, सत्यार्थ, भूतार्थ परमार्थ छे.
पर्यायद्रष्टिनो विषय–पर्याय, अशुद्ध, भेद, गौण, व्यवहार, असत्यार्थ, अभूतार्थ, उपचार छे.
‘ज्ञायक स्वभाव ते हुं’ एवी शुद्ध स्वभावद्रष्टि प्रगट कर्या विना जो पर्यायनी मलिनताने जाणवा जशे
तो ‘राग ते ज हुं’ एवी एकत्वबुद्धिथी मिथ्यात्व थशे; केमके स्वभावमां एकत्वबुद्धि नथी एटले विकारमां
एकत्वबुद्धि थया विना रहेशे नहि. जेम खरेखर निश्चय वगर व्यवहार होतो नथी तेम शुद्ध द्रव्यना ज्ञान वगर
पर्यायनुं यथार्थ ज्ञान थतुं नथी. ज्ञायकस्वभाव ते हुं एवी वीतरागीद्रष्टि थया वगर ज्ञान रागने जाणी शके
नहि. ज्ञायक स्वभावनी द्रष्टि थया पछी, रागने जाणतां ज्ञान तेनी साथे एकाकार थतुं नथी पण भिन्न रहीने
ज जाणे छे; ते ज्ञान क्षणे क्षणे स्वभावमां एकतापणे ने रागथी भिन्नतापणे ज परिणमी रह्युं छे,–आनुं नाम
भेदज्ञान छे ने ते अपूर्व धर्म छे. शुद्ध आत्मद्रव्यनी द्रष्टिथी ज आवा अपूर्व धर्मनी शरूआत थाय छे.
श्री समयसार गा. ६ उपरना प्रवचनमांथी
वीर सं. २४७७ अषाड सुद ११