
अंतरदशानी शी वात! अज्ञानी करतां एमना काळजा
जुदा होय छे.....तेमना हृदयमां आंतरा होय
छे....एमना अंतर पलटा जुदा होय छे. अज्ञानी एने
क्यां काळजे मापशे?
रमाडे; त्यां बंनेनी क्रिया एक सरखी देखाय छतां
भावमां धणां आंतरा होय छे. तेवी रीते अज्ञानी
अने ज्ञानीनी क्रिया बहारथी एक सरखी देखाय पण
भावमां धणा आंतरा होय छे.
एक रागनो कणियो पण मारो नथी; नबळाईने
लईने आ अस्थिरतमां जोडाउं छुं ते मारा आनंदनी
लूंट छे, मने कलंक छे; आ क्षणे वीतराग थवातुं होय
तो बीजुं कांई जोईतुं नथी.–आवुं ज्ञानीनुं हृदय छे.
जाणी शके? ए तो जे जाणे ते जाणे! साधकना हृदय
बहारथी कल्पी शकाय तेवा नथी.