मारा स्वभावमां ज छे’ एम समजीने, परद्रव्योथी निरपेक्ष थईने स्वभावनो आश्रय करतां अल्पकाळमां सिद्ध
थई जाय छे.
पोताना आत्मामांथी ज प्रगटयुं छे, कांई बहारमांथी सिद्धपणुं नथी आव्युं. जेओ सिद्धपरमात्मा थई गया
छे तेओ पण, सिद्ध थया पहेलां शरीर वगेरेने पोतानुं मानीने राग–द्वेष–मोहथी संसारमां रखडता हता;
पछी दुर्लभ मनुष्यपणुं पामीने सत्समागममां कोईक धन्य पळे स्वसन्मुख पुरुषार्थवडे अपूर्व भेदविज्ञान
प्रगट कर्युं, ने सिद्ध जेवा पोताना शुद्ध चिदानंदभगवाननो अनुभव कर्यो; त्यारथी ते भव्यात्मानी
परिणतिए अंर्तस्वरूपमां ज पोतानुं सुख देख्युं, ने बर्हिविषयोमां मारुं सुख नथी–एम जाणीने त्यांथी
तेनी परिणति उदासीन थवा लागी.
शुद्ध–आत्माना उग्र ध्यान वडे समस्त राग–द्वेष–मोहनो नाश करीने केवळज्ञान प्रगट कर्युं ने पछी अल्पकाळमां
देह छोडीने ते आत्मा अशरीरी चैतन्यबिंब सिद्धपदने पाम्यो.
जेम ते आत्माए पोतानी शक्तिमांथी ज सिद्धदशा प्रगट करी, तेम आ आत्मामां पण सिद्ध थवानी
आत्माना स्वभावमां सिद्ध थवानी ताकात भरी छे तेमांथी ज सिद्धदशा प्रगटे छे. सिद्ध भगवंतो आ
आत्माना अरीसा समान छे. जेम स्वच्छ अरीसामां मोढुं देखाय छे तेम सिद्ध भगवानने ओळखतां
पोताना शुद्ध स्वभावनुं भान थाय छे के हे आत्मा! जेवा सिद्ध छे तेवो ज तारो स्वभाव छे; केवळज्ञानादि
जे जे गुणो सिद्ध भगवानने प्रगट छे ते बधा गुणो तारा स्वभावमां भर्या छे, ने रागादि जे जे भावो
सिद्ध भगवानमांथी नीकळी गया छे ते ते भावो तारुं स्वरूप नथी.–आ प्रमाणे पोताना आत्मानुं
शुद्धस्वरूप ओळखीने तेमां एकाग्रता वडे विकारनो अभाव करीने जीव अल्पकाळमां सिद्धिने पामे छे, ने
ए सिद्धदशामां लोकालोकना ज्ञाताद्रष्टापणे रहीने सादिअनंतकाळ जीव पोताना स्वभाव सुखने भोगव्या
करे छे.
न माने, परंतु कहे के जेम झेर खावाथी अमृतना ओडकार कदी
न आवे तेम जे भावे बंधन थाय ते भावे कदी मोक्ष तो न
थाय पण मोक्षमार्गनी शरूआत पण तेनाथी न थाय.