Atmadharma magazine - Ank 105
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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वीरशासन जयंती महोत्सव
गध देशनी राजगृही नगरीमां विपुलाचल पर्वत उपर श्री महावीर प्रभुजीनुं
समवसरण शोभी रह्युं छे. वैशाख सुद दसमे प्रभुजीने केवळज्ञान थई गयुं छे अने भव्य
जीवोनां टोळेटोळां प्रभुजीनी दिव्यदेशना झीलवा माटे चातकनी जेम तलसी रह्यां छे......के
कयारे प्रभुनो दिव्यध्वनि छूटे अने कयारे ए दिव्यदेशना झीलीने पावन थईए! ! !
.......पण प्रभुनो दिव्यध्वनि हजी छूटतो नथी.....दिवसो पर दिवसो वीतता जाय
छे....छांसठ छांसठ दिवस वीती गया.......हवे तो अषाड मास पूरो थयो ने श्रावण वद एकम
(गुजराती अषाड वद एकम) आवी.......!
–ए दिवसना सुप्रभाते गौतमस्वामी वीरप्रभुजीना समवसरणमां
पधार्या......मानस्तंभने देखतां अभिमान गळी गयुं..........ने वीरप्रभुजीनी दिव्यवाणीनो
धोध छूटयो......तीर्थंकरप्रभुनी अमोघ देशना शरू थई.....अनेक सुपात्र जीवो ए
तत्कालबोधक देशना झीलीने रत्नत्रयथी पावन थया....गौतमस्वामी गणधरपद पाम्या ने
दिव्यध्वनिमांथी झीलेलुं रहस्य बारअंगरूपे गूंथ्युं. ए धन्यदिने भव्यजीवोना आनंद अने
उल्लासनी शी वात!!
अहो!
‘संसारी जीवनां भावमरणो टाळवा करुणा करी.....
सरिता वहावी सुधा तणी प्रभु वीर! ते संजीवनी.’
वीरप्रभुना श्रीमुखथी वहेली ए स्याद्वाद–गंगानो पवित्र प्रवाह अछिन्नधाराए
वहेतो थको आजेय अनेक मुमुक्षुओने पावन करी रह्यो छे. आ अषाड वद एकमे
जगत्कल्याणकारी श्री वीरशासनप्रवर्तनना २प०६ वर्ष पूर्ण थईने २प०७मुं वर्ष प्रारंभ
थशे.... वीरशासन जयंतीना ए मंगल–महोत्सवने मुमुक्षुओ आजेय होंशपूर्वक ऊजवे छे.
‘स्याद्वाद केरी सुवासे भरेलो, जिनजीनो ॐकार नाद रे,
जिनजीनी वाणी भली रे.
वंदुं जिनेश्वर, वंदुं हुं कुंदकुंद, वंदुं ए ॐकार नाद रे,
जिनजीनी वाणी भली रे.
हैडे हजो, मारा भावे हजो, मारा ध्याने हजो जिनवाण रे,
जिनजीनी वाणी भली रे.
जिनेश्वरदेवनी वाणीना वायरा, वाजो मने दिनरात रे,
जिनजीनी वाणी भली रे.’
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