Atmadharma magazine - Ank 106
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २००८ : आत्मधर्म–१०६ : २०३ :
* वस्तु स्वभाव *
जे द्रव्य छे पर तेहने न ग्रही, न छोडी शकाय छे,
एवो ज तेनो गुण को प्रायोगी ने वैस्त्रसिक छे. ४०६.
–श्री समयसार.
* साची शरूआत *
‘पूर्णताना लक्षे शरूआत
ते ज वास्तविक शरूआत छे.’
पू. श्री गुरुदेव.
* धर्मनुं मूळ *
‘दसंण मूलो धम्मो’
–धर्मनुं मूळ दर्शन छे. –श्री अष्टप्राभूत.
* ओछामां ओछुं कर्तव्य *
करी जो शके, प्रतिक्रमण आदि ध्यानमय करजे अहो!
कर्तव्य छे श्रद्धा ज, शक्तिविहीन जो तुं होय तो. १५४.
–श्री नियमसार
* कां कर्ता, कां ज्ञाता *
जे करे छे ते केवळ करे ज छे
अने जे जाणे छे ते केवळ जाणे ज छे;
जे करे छे ते कदी जाणतो नथी
अने जे जाणे छे ते कदी करतो नथी.
श्री समयसार–कलश. ९६
* पात्रता *
पात्र विना वस्तु न रहे,
पात्रे आत्मिक ज्ञान;
पात्र थवा सेवो सदा
ब्रह्मचर्य मतिमान.
* श्रावकोनां छ आवश्यक *
देवपूजा गुरुपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः।
दानं चेतिगृहस्थानां षट्कर्माणि दिने दिने।। ७।।
–श्री पद्मनंदि पंचविंशति.
जेम कमळनी अंदर भ्रमर समाई जाय छे तेम
जेमना ज्ञानकमळमां आ जगत तेम ज अजगत सदा
स्पष्टपणे समाई जाय छे, ते नेमिनाथ तीर्थंकर
भगवानने हुं खरेखर पूजुं छुं के जेथी ऊंचा
तरंगोवाळा समुद्रने पण बे भुजाओथी तरी जाउं.
–श्री नियमसार टीका.
जेमणे उपादान–निमित्त, निश्चय–व्यवहार,
द्रव्यस्वातंत्र्य, क्रमबद्धपर्याय, स्वानुभूति, चारित्रदशा
वगेरेनुं सर्वज्ञप्रणीत यथार्थ स्वरूप समजाव्युं तथा
परद्रव्योनुं, शुभाशुभभावोनुं तेम ज शुद्धभावनुं पण
धर्मनी रीत
धर्म क्यां छे अने धर्म केम थाय?
परमां धर्म नथी, पर वडे धर्म थतो नथी.
शरीरमां धर्म नथी, शरीर वडे धर्म थतो नथी.
पापमां धर्म नथी, पाप वडे धर्म थतो नथी.
पुण्यमां धर्म नथी, पुण्य वडे धर्म थतो नथी.
पर्यायमां धर्म छे पण पर्यायना आश्रये धर्म थतो नथी.
आत्माना एकरूप ज्ञायकस्वभावना आधारे पर्यायमां धर्म थाय छे;
पण अभेद वस्तुमां भेद पाडीने ते भेदना आश्रये धर्म थतो नथी.
माटे
जो तमारे धर्म करवो होय तो तेनी रीत ए छे के
परथी, शरीरथी, पापथी ने पुण्यथी जुदा अभेद ज्ञायक–
स्वभावी तमारा आत्माने ओळखीने तेनो आश्रय करो!