
आत्माने कल्याणरूप थाय ते ज करवुं छे.
आपना चरण कमळमां परम भक्तिथी नमस्कार!
गणधर अने अध्यापकोने सर्व साधु समूहने.
तसु शुद्ध दर्शनज्ञान मुख्य ‘पवित्र आश्रम’ पामीने,
प्राप्ति करुं हुं साम्यनी जेनाथी शिवप्राप्ति बने.
वृद्धिह्रासव्यपेतं विषयविरहितं निःप्रतिद्वन्द्व भावम्।।
अन्यद्रव्यानपेक्षं निरूपमममितं शाश्वतं सर्वकालं।
उत्कृष्टानंतसारं परमसुखमतस्तस्य सिद्धस्य जातम्।। ७।।
वाणी चिन्मूर्ति! तारी उर अनुभवना सूक्ष्म भावे भरेली;
भावो ऊंडा विचारी अभिनव महिमा चित्तमां लावी लावी,
खोयेलुं रत्न पामुं–मनरथ मननो, पूरजो शक्तिशाळी!
स्वसमयमां प्रवृत्ति एवो तेनो अर्थ छे.
ते ज वस्तुनो स्वभाव होवाथी धर्म छे.
शुद्ध चैतन्यनुं प्रकाशवुं एवो तेनो अर्थ छे.
ते ज यथास्थित आत्मगुण होवाथी साम्य छे.
आत्मसन्मुख करतो अत्यंत विकल्प रहित थईने तत्काळ
निजरसथी ज प्रगट थता आदि–मध्य–अंतरहित,
अनाकुळ, केवळ एक, आखाय विश्वना उपर जाणे के
तरतो होय तेम अखंड प्रतिभासमय, अनंत,
विज्ञानघन, परमात्मरूप समयसारने ज्यारे आत्मा
अनुभवे छे ते वखते ज आत्मा सम्यक् पणे देखाय छे.
अने जणाय छे तेथी समयसार ज सम्यग्दर्शन अने
सम्यग्ज्ञान छे. –श्री समयसार–आत्मख्याति.
सम्यक्त्व–आदिक भाव रे! भाव्या नथी पूर्वे जीवे. ९०.
भवना अभाव माटे तेमने भावुं छुं.