
द्रव्य छे, तेमां निमित्तनैमित्तिक संबंध होतो नथी. हुं परनो कर्ता छुं–एवी बुद्धि ते तो महा मिथ्यात्व छे, अने हुं परने
उपर द्रष्टि छे अने शुद्ध द्रव्य तेनी प्रतीतमां आवतुं नथी तेथी सम्यग्दर्शन थतुं नथी.
सहजस्वभाव थई जाय! तेम ज निमित्त जो विकार करावतुं होय तो जीव तेने कदी टाळी शके नहि; माटे जीव पोताना
दोषथी विकार करे त्यारे तेने कर्म साथे निमित्त–नैमित्तिक संबंध होय छे, पण कर्म जीवने विकार करावे छे–एम नथी.
जाणीने, तेना उपर ज द्रष्टि राख्या करे, पण पर्याय अने निमित्तनुं लक्ष छोडीने स्वभाव तरफ द्रष्टि न करे, तो तेने पण
मिथ्यात्व टळतुं नथी, ते जीव पर्यायबुद्धिमां अटकी गयो छे. ज्यांसुधी निमित्तनैमित्तिक संबंध उपर लक्ष रहे छे त्यांसुधी
रागनी उत्पत्ति थाय छे, अने निरपेक्ष ज्ञानानंदस्वभावना लक्षे अकाग्र थतां रागनी उत्पत्ति थती नथी, ने
निमित्तनैमित्तिकभावनो पण अभाव थतो जाय छे. ज्यां निमित्त, राग अने पर्यायनी रुचि छोडीने शुद्ध अखंड स्वभावनी
रुचि प्रगट करी अने सम्यग्दर्शन थयुं त्यां मिथ्यात्वकर्म साथेना निमित्तनैमित्तिक भावनो अभाव थई गयो तेम ज कुदेव–
कुगुरु–कुशास्त्र तेमज मध–मांस–दारू वगेरे साथेनो निमित्तनैमित्तिक संबंध पण छूटी गयो. आ प्रमाणे स्वभावना आश्रये
जेम जेम शुद्धता वधती जाय छे तेम तेम राग छूटतो जाय छे ने रागना निमित्तो साथेनो संबंध पण छूटतो जाय छे. ज्यां
मुनिदशा प्रगटे त्यां वस्त्रादि परिग्रह साथेनो निमित्तनैमित्तिक संबंध छूटी जाय छे, संपूर्ण शुद्ध दशा थतां बधा पदार्थो
साथेनो विकार तरीकेनो निमित्तनैमित्तिक संबंध छूटी जाय छे ने फकत शुद्ध ज्ञेयज्ञायक संबंध ज रहे छे.
समजी लेवुं. पहेलांं सर्व निमित्तनैमित्तिक संबंधनी द्रष्टि छोडीने ज्ञायक स्वभावनी द्रष्टि करतां सम्यग्दर्शन थाय छे, त्यां
मिथ्यात्वना निमित्तो साथेनो निमित्तनैमित्तिक संबंध छूटे छे, ने पछी स्वभावमां एकाग्रताथी जेम जेम शुद्धता प्रगटती जाय छे
तेम तेम अशुद्धता छूटती जाय छे तथा परद्रव्य साथेनो निमित्तनैमित्तिक संबंध पण छूटतो जाय छे. आ प्रमाणे जाणे तो
निमित्तनैमित्तिक संबंधने जाण्यो कहेवाय, पण निमित्तने लीधे विकार थाय अथवा ते कर्मना उदय प्रमाणे ज जीवने रागद्वेष थाय
–एम जे माने तेने तो निमित्तनैमित्तिक संबंधनुं पण ज्ञान नथी; तेमज जे भूमिकामां जे पदार्थो साथे निमित्तनैमित्तिक संबंध न
होय ते भूमिकामां तेवो निमित्तनैमित्तिक संबंध मनावे तो तेने पण निमित्तनैमित्तिक संबंधनुं ज्ञान नथी. जेमके मुनिदशामां वस्त्र
साथेनो निमित्तनैमित्तिक संबंध होय ज नहि, छतां त्यां वस्त्र मनावे तो ते जीवने मुनिदशानुं के निमित्तनैमित्तिक संबंधनुं भान
नथी, केवळज्ञानदशा प्रगटी गई होय अने आहार करवानुं माने तो ते जीवने केवळज्ञानदशामां केवो निमित्तनैमित्तिक संबंध होय
तेनुं भान नथी ने केवळज्ञाननी पण तेने ओळखाण नथी. शुद्ध स्वभावनी द्रष्टि निमित्तने नथी स्वीकारती, पण जेने एवी
अपूर्व द्रष्टि प्रगटी होय ते जीवने स्वपरप्रकाशक ज्ञाननी खीलवटमां निमित्तनैमितिक संबंधनुं यथार्थज्ञान होय छे. कई भूमिकामां
केवा निमित्त होय ने केवा निमित्तोनो संबंध छूटी गयो होय तेनो तेने बराबर विवेक होय छे. –प्रवचनमांथी.