Atmadharma magazine - Ank 106
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष ९ अंक दसमो, सं. २००८ श्रावण (वार्षिक लवाजम ३–००)
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त्रणकाळ त्रणलोकमां जीवने सम्यग्दर्शन समान कल्याणरूप अन्य
कोई पदार्थ नथी; सम्यग्दर्शन विना गमे तेटलुं करे तो पण किंचित् कल्याण
थतुं नथी. सम्यग्दर्शन पछी ज सम्यक्चारित्र होय छे. मिथ्याश्रद्धा समान
अन्य कोई शत्रु नथी ने सम्यग्दर्शन समान अन्य कोई हितरूप नथी.
बाह्यद्रष्टि लोकोने सम्यग्दर्शननो महिमा ख्यालमां आवतो नथी. अहो!
आत्माना पूर्ण प्रयत्नथी शुद्ध चिदानंद स्वभावनी ओळखाण करीने
सम्यक्दर्शन करवुं ते ज भगवान सर्वज्ञनो अने संतोनो महान उपदेश छे.
पोताना सर्वस्व उपाय अने उद्यमथी मिथ्यात्वनो नाश करीने सम्यक्त्व
प्रगट करवुं–एवो श्री गुरुनो उपदेश छे. –प्रवचनमांथी.