केमके तेनी वात कदी सांभळी नथी. केटलाक बोलका तो एवुं
भरडे के तत्त्वनो कांई मेळ होय नहि! अंतरनी वस्तुने जाण्या
विना बहारनी वातोना धडाका करे. बापु! अनंतकाळमां तने
सम्यक् वस्तुस्थितिनी खबर पडी नथी, तें अंतरनी जिज्ञासाथी
सत् सांभळ्युं पण नथी. आ तो पूर्वे अनंत काळे नहि प्राप्त
थयेल एवी अपूर्व चीज छे. आ समज्या विना कोईनुं कल्याण
थाय तेम नथी.
थाय एवुं सत्य नथी. तुं जुदो स्वतंत्र छो, तने कोई बीजो
समजावी शके नहि. तारी तैयारी विना बीजो कोई तने निमित्त
पण थई शके नहि. सामो जीव पोतानी पात्रताथी समजे तो
समजवामां बीजो निमित्त कहेवाय, अने न समजे तो बीजो तेने
निमित्त पण न कहेवाय. आ तो पोते पोतानुं स्वरूप समजीने
पोतानुं कल्याण करी लेवानी वात छे, जगत समजे के न समजे,
पण जे सत्य छे ते कांई फरे तेम नथी. जगत न समजे तेथी
कांई सत्य फरीने असत् न थई जाय. बीजा न समजे तेथी कांई
पोतानुं कल्याण अटकी जतुं नथी. दरेक जीव स्वतंत्र छे, तेथी
बीजा जीवो न समजे ने विरोध करे तोपण ज्ञानीने पोतानी
समजणमां शंका पडती नथी.