Atmadharma magazine - Ank 107
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष ९मुं, अंक अगियारमो, सं. २०८, भाद्रपद (वार्षिक लवाजम ३ – ० – ०)
१०७
: संपादक :
वकील रामजी माणेकचंद दोशी
निजशक्तिनी संभाळ
जीव पोतानी शक्तिथी परिपूर्ण छे पण ते पोतानी संभाळ करतो नथी
तेथी पराश्रयनी भीख मागी मागीने भटकी रह्यो छे; जो निजशक्तिनी संभाळ
करे तो पराश्रय छूटीने स्वाश्रये अल्पकाळमां सिद्ध थई जाय. जे अनंता
सिद्धभगवंतो थया ते बधाय निजशक्तिनी संभाळ करीने तेना आश्रये ज सिद्ध
थया छे. माटे हे जीव...!...
....तारी अनंत शक्तिओ तारामां एक साथे भरी छे तेने तुं संभाळ. तुं ज
सर्वशक्तिमान परमेश्वर छो–एनो विश्वास करीने तेमां अंतर्मुख था तो तारी
पर्यायमां सर्वशक्ति प्रगटी जाय. तारी जेटली शक्ति छे ते बधी तारामां ज भरी
छे, माटे क्यांय पण पराश्रयनी आशा छोडीने तारा स्वभावनो ज आश्रय कर.
–प्रवचनमांथी.