अपूर्व श्रद्धा जीवने बहारमां उछाळा मारतो अटकावी दे छे ने तेना परिणमनने
अंतर्मुख करी दे छे. स्वभावसन्मुख थया विना सर्वज्ञत्वशक्तिनी प्रतीत थाय नहि. आ
रीते आत्मानी सर्वज्ञत्वशक्तिनी प्रतीत करतां तेमां मोक्षनी क्रिया–धर्मनी क्रिया आवी
जाय छे. अल्पज्ञ पर्याय वखते पण सर्वज्ञशक्ति होवानो जेणे निर्णय कर्यो तेनी रुचिनुं
जोर अल्पज्ञ पर्याय उपरथी खसीने अखंड स्वभावमां वळी गयुं छे, एटले ते जीव
‘सर्वज्ञ भगवाननो नंदन’ थयो छे. जे आत्मा पोताना आवा ज्ञानवैभवनी प्रतीत करे
ते ज खरो जैन अने सर्वज्ञदेवनो भक्त छे.