Atmadharma magazine - Ank 108
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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आसो: २४७८ : २४५ :
‘आत्मधर्म’ ना लेखोनी कक्कावारी
[वष नवम: अक ९७ थ १०८]
विषय अंक–पृष्ठ विषय अंक–पृष्ठ
• अ – आ – उ – ओ •
अतीन्द्रियज्ञान १०६–२०४ आत्मकार्य १०७–२२८
अध्यात्मनुं रहस्य २०७–२१७ आत्मज्ञ ते शास्त्रज्ञ ९७–२४
अनेकान्तगर्भित सम्यक् नियतवाद ९८–४४ आत्मज्ञानने ईन्द्रियो के रागनुं आलंबन नथी १०१–१०७
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी केटलीक शक्तिओ आत्मज्ञानीनी सेवा १०१–९६
(समयसारनी ४७ शक्तिओ उपरनां प्रवचनो) ‘आत्मधर्म’ मासिकनो प्रथम सैको १००–८३
(१) जीवत्वशक्ति ९८–३६ आत्मधर्मना लेखोनी कक्कावारी १०८–२४प
(२) चितिशक्ति ९९–४८ ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? (३) ९७–१प
(३) द्रशिशक्ति ९९–प८ (प्रवचनसारना परिशिष्ट उपरनां प्रवचनो)
(४) ज्ञानशक्ति १००–७१ ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? (४) ९८–३२
(प) सुखशक्ति १०२–१११ ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? (५) ९९–प०
(६) वीर्यशक्ति १०२–११४ ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? (६) १००–६७
(७) प्रभुत्वशक्ति १०३–१३८ ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? (७) १०२–११८
(८) विभुत्वशक्ति १०४–१प८ ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? (८) १०३–१३२
(९) सर्वदर्शित्वशक्ति १०६–१९प ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? (९) १०४–१प१
(१०) सर्वज्ञत्वशक्ति १०७–२११ ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? (१०) १०६–१९१
(११) स्वच्छत्वशक्ति १०८–२४१ ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? (११) १०८–२३१
अनंत ज्ञानीओना अभिप्रायनी एकता १०२–१२८ आत्माना ज्ञानमात्र भावमां उछळती अनंतशक्तिओ ९८–२७
अभेदस्वभावना आश्रये ज धर्मनी धीकती धारा १०३–१४६ आत्मानी प्रभुतानुं अद्भुत वर्णन १०३–१३८
अरे जीव! विरोध छोडीने हा पाड! १०७–२१६ आत्मानी विभुतानुं वर्णन १०४–१प८
अर्धश्लोकमां मुक्तिनो उपदेश ९९–६३ आत्मानी समजण ९८–४३
अल्पज्ञता वखते पण सर्वज्ञस्वभावनो निर्णय१०४–१६४ आत्माने राजी करवानी धगश १०१–१०७
अहो, जैनधर्मनो वैभव! १०प–१७८ आत्मिक शौर्यने ऊछाळनारी पू. गुरुदेवश्रीनी वाणी १००–८३
अहो, रत्नत्रय–महिमा! ९७–२३ आंखो फाडीने टगटग जोई ज रहे छे! १०६–२०प
अहो, शुद्धात्मप्राप्तिनी दुर्लभता! १०१–९९ उल्लास अने विश्वास १०२–१०९
अहो, संतोनुं पराक्रम ९७–१४ “कार ध्वनिना नाद १०प–१६९
अंधकार अने प्रकाश ९८–४३ ज्ञ
कल्याणकारी सम्यग्दर्शननो उपदेश १०८–१८९