Atmadharma magazine - Ank 108
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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: २४६ : आत्मधर्म: १०८
विषय अंक–पृष्ठ विषय अंक–पृष्ठ
कादवमां कमळ १०४–१६६ अगियार पडिमाओनुं वर्णन १०१–९२
काम एक आत्मार्थनुं... बीजो नहि मन रोग १००–८४ दर्शावुं तो करजो प्रमाण १०१–१०१
केवी द्रष्टिथी साधकपणुं थाय? १०७–२१७ ‘–दर्शावुं तो करजो प्रमाण’ १०२–१२८
क्रमबद्ध पर्यायना निर्णयमां आवी जतो दसलक्षणी धर्म अथवा पर्यूषण पर्व १०६–१९४
सम्यक् पुरुषार्थ ९८–४४ दि. जैन तिथि–दर्पण ९७–२२
गिरनारनी टोच उपर... शुद्धात्मानी धून १०३–१४८ दुर्गतिमां पडतां बचावे तेनुं नाम धर्म १०४–१६८
गुणस्थानवृद्धि अर्थात् धर्मवृद्धिनी रीत १०३–१४६ दुष्काळ राहत–फंड १०२–१२६
ग्राहकोने ९७–२२ देखो... रे... देखो! चैतन्यनिधानने देखो! १०७–२२४
चारित्रनी भावना १०प–१८८ देशनालब्धिनो नियम १०१–९६
चेतन अने अचेतन वस्तुना स्वरूपनी पूर्णता १०४–१६४ ‘द्रव्यद्रष्टि ते सम्यग्द्रष्टि छे’ १०४–१६७
‘चैत्र सुद तेरस’ १०३–१३० ‘द्रव्यस्वभावनुं खास वर्णन
जिज्ञासुओने जरूरनुं ९९–४प (क्रमबद्धपर्याय–गर्भित) १०३–१३३
जिज्ञासु शिष्यनी पात्रता १०६–२०प धर्म १०४–१६८
‘जिनना समोसरण सौ जयवंत वर्तो’ १०३–१३० धर्म क्यां छे अने केम थाय? १०६–२०२
जिनसूत्र सम्यक्त्वनुं बहिरंग निमित्त अने धर्मनी रीत १०६–२०२
ज्ञानी अंतरंग निमित्त ९९–प३ धर्मपितानो ऊंडो आशय समजे तो
जिनागमना अभ्यासनुं फळ अने आत्मधर्म प्रगटे ९९–६४
तेना निरंतर अभ्यासनो उपदेश १०८–२३प धर्मी जीवनी द्रष्टि कोना उपर छे? १०४–१६१
जीव अने शरीर वच्चे केटलुं अंतर? १०प–१८७ धर्मीने विघ्न नथी ९८–४२
जीवनुं कार्य १०७–२२० धार्मिक–प्रवचनना खास दिवसो १०६–१९४
जेवुं उपादान तेवुं निमित्त १०२–१२७ ध्यान राखजो! १०४–१६१
जैन विद्यार्थी–गृह सोनगढ १०३–१३१ नामथी जैन पण भावथी बौद्ध १०१–९६
ज्ञानज्योतिनो झणेणाट १०१–९७ निकटवर्ती शिष्यजनने श्री आचार्योनो उपदेश १०४–१६२
ज्ञाननुं कार्य ९९–प७ निजशक्तिनी संभाळ १०७–२०९
ज्ञानलक्षणथी प्रसिद्ध थतो अनंतधर्म स्वरूप निमित्त–नैमित्तिक संबंध १०६–२०१
अनेकान्तमूर्ति आत्मा ९७–३ नियमसार परमागमनो उद्देश ९७–२१
ज्ञानीना गज जुदा होय छे ९८–४२
ज्ञानी ना पाडे छे १०प–१८२ परम चैतन्यरत्न! ९९–६३
ज्ञानीने सर्वत्र शुद्धात्मकथा, अज्ञानीने परमात्मभावना १०३–१४८
सर्वत्र विकथा १०२–१२७ परमात्मानुं प्रतिबिंब १०१–१०७
ज्ञायक भावनी उपासना १०१–९७ पर्यायनुं सत्पणुं १०१–९८
ज्ञायक स्वभावनी उपासना १०७–२१० पर्यायमूढ ते परसमय छे १०४–१६७
त–द–ध–न ‘पर्यायमूढ परसमय छे’ १०१–९६
–तो ज्ञानी शुं कहे? १०प–१८प पंचास्तिकायनुं भाषांतर १००–६६
दरेक द्रव्यनी स्वकाळलब्धि ९७–२ पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनमां वंचायेला
दर्शनशुद्धिपूर्वक श्रावकनी सुशास्त्रोनी यादी १००–७९