Atmadharma magazine - Ank 108
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page  


PDF/HTML Page 25 of 25

background image
ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
अनिह्नव – विनयनुं स्वरूप
(ज्ञानविनयना आठ प्रकार छे, तेमां अनिह्नव नामनो एक प्रकार आवे छे. श्री
मूलाचार ग्रंथना पांचमा अध्यायमां ‘अनिह्नव–विनय’ नी व्याख्या आवे छे; ते
जिज्ञासुओने उपयोगी होवाथी अहीं आपवामां आवी छे. मूलाचारनी टीका श्री वसुनंदी
सिद्धांतचक्रवर्तीदेवे करेली छे.
कुलवयसीलविहूणे सुत्तत्थं सम्मगागमित्ताणं।
कुलवयसीलमहल्ले णिण्हवदोसो दु जप्पंतो।।
कुलव्रतशीलविहीनाः सूत्रार्थं सम्यगवगम्य।
कुलव्रतशीलमहत्तो निह्नवदोषस्तु जल्पन्तः।।
अर्थ:– कुळ=गुरुसंतति, गुरुपरंपरा; व्रत=अहिंसा सत्यादिक पांच महाव्रत;
शील=जेनाथी व्रतोनुं रक्षण थाय छे एवा तपश्चरणादिक आचार; जेने व्रतादिनो अभाव
छे एटले के जे व्रतादिनुं पालन करनार नथी तथा तेमां दूषण लगाडनार छे एवा साधुने
कुळ–व्रत–शीलविहीन समजवा जोईए. मठादिकोनुं पालन करवाथी अथवा अज्ञान वगेरेथी
गुरु सदोष होय छे; एवा गुरुना, ज्ञानी तथा तपस्वी शिष्यने पण कुळहीन कहेवो जोईए.
अथवा (–उत्कृष्ट अपेक्षाए) तीर्थंकर गणधर तथा सातऋद्धिसंपन्न ऋषिओथी भिन्न
मुनिओने कुळ–व्रत–शीलविहीन कहेवा जोईए. एवा कुळ–व्रत–शीलविहीन मुनिओ
पासेथी सम्यक् शास्त्रने भणीने, जो कोई साधु कुळ–व्रत–शीलसंपन्न मुनिओने बतावे छे––
एटले के ‘में कुळ–व्रत–शीलवान महा मुनिओनी पासेथी सम्यक्शास्त्रज्ञान प्राप्त कर्युं छे’
एम कहे छे तो ते साधु निह्नवदोषथी दूषित थाय छे. जे साधु पोतामां गर्व राखे छे.
(अर्थात् गर्वयुक्त थईने शास्त्रनो अने गुरुनो लोप करे छे), ते साधु शास्त्रनो निह्नव
तेम ज गुरुनो निह्नव करे छे; एवा अकार्यथी तेने महान कर्मबंध थाय छे. ‘हुं
जिनेन्द्रप्रणीत शास्त्र भणीने के सांभळीने ज्ञानी नथी थयो परंतु नैयायिक–वैशेषिक–
सांख्य–मीमांसक–बौद्ध वगेरे विद्वानो पासेथी मने बोध प्राप्त थयो छे’ –एम जे लोकपूजादि
हेतुथी कहे छे, तथा निर्ग्रंथ यतिओ पासेथी अध्ययन करीने लोकपूजादि हेतुथी जे एम कहे
छे के ‘हुं ब्राह्मणादिक मिथ्यात्वीओ पासेथी भण्यो छुं, ’ ––ते त्यारथी निह्नवदोषने लीधे
मिथ्याद्रष्टि छे एम समजवुं जोईए. सामान्य यतिओ पासेथी शास्त्र भणीने एम कहेवुं के
‘हुं तीर्थंकरादिक पासेथी भण्यो छुं’ ते पण निह्नवदोष छे.
[जेमनी पासेथी पोताने ज्ञान प्राप्त थयुं होय ते गुरुनो तथा शास्त्रनो यथार्थ
विनय जाळववो, अने उपर कहेला कोईपण जातना निह्नवदोष लागवा देवा तेनुं नाम
अनिह्न विनय छे.
]
[––जुओ, मूलाचार: संस्कृत आवृत्ति गा. ८७ तथा टीका, पृ. २३७;
हिंदी आवृत्ति गा. १०प तथा टीका पृ. १७२]
प्रकाशक:– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया: (जिल्ला अमरेली)
मुद्रक:– रवाणी एन्ड कंपनी वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, अनेकान्त मुद्रणालय: मोटा आंकडिया, ता. २०–०९–५२