जिज्ञासुओने उपयोगी होवाथी अहीं आपवामां आवी छे. मूलाचारनी टीका श्री वसुनंदी
सिद्धांतचक्रवर्तीदेवे करेली छे.
कुलवयसीलमहल्ले णिण्हवदोसो दु जप्पंतो।।
कुलव्रतशीलमहत्तो निह्नवदोषस्तु जल्पन्तः।।
छे एटले के जे व्रतादिनुं पालन करनार नथी तथा तेमां दूषण लगाडनार छे एवा साधुने
कुळ–व्रत–शीलविहीन समजवा जोईए. मठादिकोनुं पालन करवाथी अथवा अज्ञान वगेरेथी
गुरु सदोष होय छे; एवा गुरुना, ज्ञानी तथा तपस्वी शिष्यने पण कुळहीन कहेवो जोईए.
अथवा (–उत्कृष्ट अपेक्षाए) तीर्थंकर गणधर तथा सातऋद्धिसंपन्न ऋषिओथी भिन्न
मुनिओने कुळ–व्रत–शीलविहीन कहेवा जोईए. एवा कुळ–व्रत–शीलविहीन मुनिओ
पासेथी सम्यक् शास्त्रने भणीने, जो कोई साधु कुळ–व्रत–शीलसंपन्न मुनिओने बतावे छे––
एम कहे छे तो ते साधु निह्नवदोषथी दूषित थाय छे. जे साधु पोतामां गर्व राखे छे.
(अर्थात् गर्वयुक्त थईने शास्त्रनो अने गुरुनो लोप करे छे), ते साधु शास्त्रनो निह्नव
तेम ज गुरुनो निह्नव करे छे; एवा अकार्यथी तेने महान कर्मबंध थाय छे. ‘हुं
जिनेन्द्रप्रणीत शास्त्र भणीने के सांभळीने ज्ञानी नथी थयो परंतु नैयायिक–वैशेषिक–
सांख्य–मीमांसक–बौद्ध वगेरे विद्वानो पासेथी मने बोध प्राप्त थयो छे’ –एम जे लोकपूजादि
हेतुथी कहे छे, तथा निर्ग्रंथ यतिओ पासेथी अध्ययन करीने लोकपूजादि हेतुथी जे एम कहे
छे के ‘हुं ब्राह्मणादिक मिथ्यात्वीओ पासेथी भण्यो छुं, ’ ––ते त्यारथी निह्नवदोषने लीधे
मिथ्याद्रष्टि छे एम समजवुं जोईए. सामान्य यतिओ पासेथी शास्त्र भणीने एम कहेवुं के
अनिह्न विनय छे.