Atmadharma magazine - Ank 111
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४७९ : ५७ :
जीवे अनंतवार कर्या अने तेमां धर्म मान्यो छतां हजी सुधी तेना भवभ्रमणनो कांई निवेडो न आव्यो केम के
मूळभूत साधन बाकी रही गयुं छे, खरुं साधन शुं छे एनी ज जीवने खबर नथी. माटे श्रीगुरु कहे छे के अरे
प्रभु! तुं केम हवे अंतरमां विचारतो नथी के ते बधाथी बीजुं शुं साधन बाकी रह्युं? हे भाई! तुं विचार तो कर
के कल्याण केम न थयुं? कल्याणनुं मूळसाधन सद्गुरु विना पोताना स्वच्छ दे समजाय तेवुं नथी. शुद्ध आत्माना
सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान ज विना जीवनुं कल्याण थयुं नथी.
अरे आत्मा! तारी चैतन्यजात बधाथी भिन्न छे, एमां पुण्य–पाप ते तारुं स्वरूप नथी, शरीरनी
क्रियाओनुं प्रवर्तन पण तारुं नथी, तु तो जाणनार चैतन्यमूर्ति छो. अंतरमां आवा चैतन्यनी मुख्यता ते ज
साचुं साधन छे, सद्गुरुगम वगर ते समजाय तेम नथी.
चैतन्यतत्त्व अंतरमां छे तेने भूलीने जगतना जीवो बहारमां बहु दोडया. धर्म तो अंतरमां
आत्मस्वभावना आधारे छे तेना भान वगर पुण्य–पापमां धर्म मानीने बहारमां दोड करी. पण अंतरना
चैतन्यनो चमकाट कांई बहारनी दोडथी खीले? तारा आत्मधर्मने खीलववा हे जीव! तुं धीरो था, धीरो थई
गुरुगमने साथे लईने अंतरमां उतर. अनंतकाळनुं तारुं चैतन्यतत्त्व तारा ख्यालमां आव्युं नथी अने तें
बहारमां दोट मूकी छे, पण तारा कल्याणनो पंथ बहारमां नथी. शुद्धात्मानी प्रीतिथी विचारतां अंतरमां समीप
ज कल्याण छे, कल्याणनो पंथ अंतरमां छे, पोताना कल्याणनो पंथ पोताथी दूर नथी; पण गुरुगमथी साची
समजण करीने चैतन्यमां प्रीति जोडवी जोईए. एक समय पण पोतानी स्वभावजातने जाणवानो साचो प्रयत्न
जीवे कर्यो नथी, आत्माना स्वभावनो सीधो रस्तो छोडीने ऊंधे रस्ते ज दोडयो छे ने तेथी ज संसारमां रखडे छे.
अनादिथी कदी नहि करेलो एवो साचो उपाय ज्ञानी तेने समजावे छे. भाई, तुं रस्तो भूल्यो! तारा कल्याणनो
उपाय तें बहारमां मान्यो पण कल्याणनो मार्ग तो अंतरमां छे. तारा स्वभावना आश्रये ज तारी मुक्तिनो
मार्ग छे. प्रथम आवा साचा मार्गने तुं जाण अने एनाथी विपरीत बीजा मार्गनी मान्यता छोडी दे तो आ
अंतरना मार्गथी तारुं कल्याण थशे ने तारा भवभ्रमणनो अंत आवशे.
–प्रवचनमांथी.
धन्य छे ते सम्यग्द्रष्टिने.
सम्यग्द्रष्टि पोताना पूर्ण आत्माने आम माने छे के
अहो! अमे तो चैतन्य छीए, आ देह अमे नथी. अमारा
आत्माने सिद्ध भगवानथी जराय ओछो मानवो अमने
पालवतो नथी, अमे अमारा आत्माने सिद्धसमान परिपूर्ण ज
स्वीकारीए छीए. अंर्तस्वभावना अवलोकन तरफ वळतां
न्याल करी द्ये एवो अमारो चैतन्यभंडार छे. अंर्तस्वभावनी
रुचि वडे आठ वर्षनी राजकुमारिका पण आवुं आत्मभान करे
छे. पूर्वे आत्मानी दरकार कर्या वगर विषयकषायमां जीवन
विताव्युं होय छतां पण जो वर्तमानमां रुचि फेरवी नांखीने
आत्मानी रुचि करे तो आवुं अपूर्व आत्मभान थई शके छे.
–प्रवचनमांथी.