मूळभूत साधन बाकी रही गयुं छे, खरुं साधन शुं छे एनी ज जीवने खबर नथी. माटे श्रीगुरु कहे छे के अरे
प्रभु! तुं केम हवे अंतरमां विचारतो नथी के ते बधाथी बीजुं शुं साधन बाकी रह्युं? हे भाई! तुं विचार तो कर
के कल्याण केम न थयुं? कल्याणनुं मूळसाधन सद्गुरु विना पोताना स्वच्छ दे समजाय तेवुं नथी. शुद्ध आत्माना
साचुं साधन छे, सद्गुरुगम वगर ते समजाय तेम नथी.
चैतन्यनो चमकाट कांई बहारनी दोडथी खीले? तारा आत्मधर्मने खीलववा हे जीव! तुं धीरो था, धीरो थई
गुरुगमने साथे लईने अंतरमां उतर. अनंतकाळनुं तारुं चैतन्यतत्त्व तारा ख्यालमां आव्युं नथी अने तें
बहारमां दोट मूकी छे, पण तारा कल्याणनो पंथ बहारमां नथी. शुद्धात्मानी प्रीतिथी विचारतां अंतरमां समीप
समजण करीने चैतन्यमां प्रीति जोडवी जोईए. एक समय पण पोतानी स्वभावजातने जाणवानो साचो प्रयत्न
जीवे कर्यो नथी, आत्माना स्वभावनो सीधो रस्तो छोडीने ऊंधे रस्ते ज दोडयो छे ने तेथी ज संसारमां रखडे छे.
अनादिथी कदी नहि करेलो एवो साचो उपाय ज्ञानी तेने समजावे छे. भाई, तुं रस्तो भूल्यो! तारा कल्याणनो
उपाय तें बहारमां मान्यो पण कल्याणनो मार्ग तो अंतरमां छे. तारा स्वभावना आश्रये ज तारी मुक्तिनो
मार्ग छे. प्रथम आवा साचा मार्गने तुं जाण अने एनाथी विपरीत बीजा मार्गनी मान्यता छोडी दे तो आ
अंतरना मार्गथी तारुं कल्याण थशे ने तारा भवभ्रमणनो अंत आवशे.
आत्माने सिद्ध भगवानथी जराय ओछो मानवो अमने
पालवतो नथी, अमे अमारा आत्माने सिद्धसमान परिपूर्ण ज
न्याल करी द्ये एवो अमारो चैतन्यभंडार छे. अंर्तस्वभावनी
छे. पूर्वे आत्मानी दरकार कर्या वगर विषयकषायमां जीवन
विताव्युं होय छतां पण जो वर्तमानमां रुचि फेरवी नांखीने