Atmadharma magazine - Ank 111
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: ५६ : आत्मधर्म : १११
जीवनुं कल्याण केम न थयुं?
[श्री गुरुकल्याणनो साचो उपाय समजावे छे]

आ शरीरनो संयोग तो क्षणिक छे, ते जीवनी साथे कायम रहेनार नथी. जीव ज्ञानस्वरूपी त्रिकाळ
टकनार छे ते शरीरथी भिन्न छे. अज्ञानी जीव पोताना ज्ञान–स्वरूप आत्माने भूलीने पोताने शरीर जेटलो ज
माने छे, तेथी नवा नवा शरीरो धारण करीने अनादिकाळथी भवभ्रमणमां रखडी रह्यो छे. अहो! चोराशीना
अवतारमां रखडतां जीवे बीजुं तो बधुं य कर्युं पण एक पोताना शुद्ध आत्मानुं भान कदी कर्युं नथी. आ दुर्लभ
मनुष्यभव पामीने ए ज करवा जेवुं छे.
जुओ, श्रीमद् राजचंद्रजीए पण कह्युं छे के–
यम नियम संयम आप क्यिो, पुनि त्याग विराग अथाग लह्यो;
वनवास लयो मुख मौन रह्यो, द्रढ आसन पद्म लगाय दियो.
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सब शास्त्रनके नय धारि हिये, मत मंडन खंडन भेद लिये;
वह साधन वार अनंत क्यिो, तदपि कछु हाथ हजु न पर्यो;
अब कयों न विचारत है मनसें, कछु ओर रहा उन साधनसें.
‘हुं चैतन्यतत्त्व छुं’ एवा अनुभव विना अनंतकाळथी पंच महाव्रत, भगवाननी भक्ति, दान,
शास्त्राभ्यास, बाह्य त्याग वगेरे करी करीने पण जीव संसारमां ज रखडयो छे; अंतरमां चिदानंदी भगवान
आत्मा कोण छे तेनुं एक समय पण तेणे भान कर्युं नथी; ते भान वगर सम्यग्दर्शन थाय नहि अने सम्यग्दर्शन
वगर भवभ्रमण मटे नहि.
सम्यग्दर्शनना महिमानी जीवने खबर नथी; अनादिकाळमां सम्यग्दर्शन वगर आकरा नियमो लीधा,
बाह्य त्याग कर्यो, ईन्द्रियदमन कर्युं, व्रत–तप कर्या, शास्त्र वांच्या, पण अंतरमां अखंड चैतन्यस्वभाव छे ते
तरफ वळीने एकाग्र न थयो. जीवने दिशाभ्रम थई गयो छे एटले अंतरनी दिशा सूझती नथी ने बहारमां
कल्याणना उपाय करी रह्यो छे, पण बहारना उपायथी कदी कल्याण थतुं नथी.
आत्माने लक्षमां लीधा विना परथी ने पुण्यथी लाभ मानीने तेमां अटकी रह्यो छे; मोटा राजपाट
छोडीने अथाग त्याग ने मंद कषाय करीने तेमां कृतकृत्यता मानी लीधी, वळी मौन रह्यो ने तेमां धर्म मानी
लीधो; जंगलनी गुफामां जईने कलाकोना कलाको सुधी द्रढ पद्मासन लगावीने बेठो, पण जेनुं ध्यान करवानुं छे
तेने तो ते ओळखतो नथी एटले शुभरागमां एकाग्र थईने तेने ज धर्म मानी लीधो. आ रीते पोतानी
कल्पनाथी अनेक उपायो जीवे कर्या पण हजी सुधी तेनुं किंचित् कल्याण थयुं नहि. तेथी ज्ञानी तेने करुणापूर्वक
कहे छे के अरे जीव! हवे तुं विचार तो खरो के अत्यार सुधी आटआटला उपायो करवा छतां कांई पण हाथ न
आव्युं, तो कल्याणनो साचो उपाय कांईक बीजो ज लागे छे. में अत्यार सुधी जे जे उपायो कर्या ते बधा उपायो
जूठा छे ने कल्याणनो उपाय तेनाथी जुदी जातनो छे.–आम विचारीने गुरुगमे साचा उपायनी ओळखाण कर.
विकारने अने जडनी क्रियाने आत्माना धर्मनुं साधन मानीने अनादिथी ते साधन कर्यां, पण तेनाथी
आत्मानुं कांई कल्याण थयुं नहि. वळी अज्ञानी जीव अंदरना चैतन्यभगवानने चूकीने बहारना भगवानना
जप जप्यो ने ढगलाबंध उपवासादि करीने तप तप्यो, घरबार प्रत्ये उदासीनता धारण करी ने जंगलमां जईने
बेठो, –एम पर लक्षे बधुं कर्युं, पण ते बधाथी जुदो आत्मा पोते कोण छे तेनी प्रतीति करी नहि. शास्त्रो वांच्या
ने वादविवाद करीने खंडन–मंडन कर्युं,–आवा आवा साधनो