आ शरीरनो संयोग तो क्षणिक छे, ते जीवनी साथे कायम रहेनार नथी. जीव ज्ञानस्वरूपी त्रिकाळ
माने छे, तेथी नवा नवा शरीरो धारण करीने अनादिकाळथी भवभ्रमणमां रखडी रह्यो छे. अहो! चोराशीना
अवतारमां रखडतां जीवे बीजुं तो बधुं य कर्युं पण एक पोताना शुद्ध आत्मानुं भान कदी कर्युं नथी. आ दुर्लभ
मनुष्यभव पामीने ए ज करवा जेवुं छे.
वनवास लयो मुख मौन रह्यो, द्रढ आसन पद्म लगाय दियो.
वह साधन वार अनंत क्यिो, तदपि कछु हाथ हजु न पर्यो;
अब कयों न विचारत है मनसें, कछु ओर रहा उन साधनसें.
आत्मा कोण छे तेनुं एक समय पण तेणे भान कर्युं नथी; ते भान वगर सम्यग्दर्शन थाय नहि अने सम्यग्दर्शन
वगर भवभ्रमण मटे नहि.
तरफ वळीने एकाग्र न थयो. जीवने दिशाभ्रम थई गयो छे एटले अंतरनी दिशा सूझती नथी ने बहारमां
लीधो; जंगलनी गुफामां जईने कलाकोना कलाको सुधी द्रढ पद्मासन लगावीने बेठो, पण जेनुं ध्यान करवानुं छे
तेने तो ते ओळखतो नथी एटले शुभरागमां एकाग्र थईने तेने ज धर्म मानी लीधो. आ रीते पोतानी
कल्पनाथी अनेक उपायो जीवे कर्या पण हजी सुधी तेनुं किंचित् कल्याण थयुं नहि. तेथी ज्ञानी तेने करुणापूर्वक
कहे छे के अरे जीव! हवे तुं विचार तो खरो के अत्यार सुधी आटआटला उपायो करवा छतां कांई पण हाथ न
आव्युं, तो कल्याणनो साचो उपाय कांईक बीजो ज लागे छे. में अत्यार सुधी जे जे उपायो कर्या ते बधा उपायो
जूठा छे ने कल्याणनो उपाय तेनाथी जुदी जातनो छे.–आम विचारीने गुरुगमे साचा उपायनी ओळखाण कर.
जप जप्यो ने ढगलाबंध उपवासादि करीने तप तप्यो, घरबार प्रत्ये उदासीनता धारण करी ने जंगलमां जईने
बेठो, –एम पर लक्षे बधुं कर्युं, पण ते बधाथी जुदो आत्मा पोते कोण छे तेनी प्रतीति करी नहि. शास्त्रो वांच्या
ने वादविवाद करीने खंडन–मंडन कर्युं,–आवा आवा साधनो