Atmadharma magazine - Ank 111
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष दसमुं, अंक त्रीजो, वीर सं. २४७९ पोष (वार्षिक लवाजम ३ – ० – ०)
: संपादक :
वकील रामजी माणेकचंद दोशी
पूर्णतानो पंथ
हे भाई! जो तारे धर्म करवो होय, पूर्णता प्रगट करवी होय तो तारे
तारा आत्मस्वभावने अपूर्ण के विकारी मानवो पालवशे नहि. जो तुं तारा
आत्माने अपूर्ण अने विकारवाळो ज मानी लईश तो तारा आत्मामांथी ते
अपूर्णता अने विकार टळशे शी रीते? अने पूर्णता ने शुद्धता आवशे क्यांथी?
पोताना आत्माने अपूर्ण अने विकारीपणे ज लक्षमां लेतां अपूर्णता अने
विकार टळता नथी, पण आत्माना पूर्ण शुद्ध स्वभावने श्रद्धामां लईने तेनुं
अवलंबन करतां पूर्णता अने शुद्धता प्रगटी जाय छे अने अपूर्णता तथा
अशुद्धता टळी जाय छे. आ रीते आत्माना शुद्ध परिपूर्ण स्वभावना लक्षे ज
पूर्णताना पंथनी शरूआत थाय छे.
–प्रवचनमांथी.