Atmadharma magazine - Ank 112
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २००९ : आत्मधर्म–११२ : ६३ :
शांतिनाथ भगवाननो वैराग्य
(धन्य ए मुनिदशा....धन्य ए अवतार....)
* * * * *
शांतिनाथ भगवानना दीक्षाकल्याणक महोत्सव प्रसंगे दीक्षावनमां
पू. गुरुदेवश्रीनुं खास वैराग्य प्रवचन: वीर सं. २४७५, जेठ सुद ४, लाठी)
* चक्रवर्ती शांतिनाथ भगवाननुं आत्मभान *
शांतिनाथ भगवान ते ज भवमां चक्रवर्ती, कामदेव अने तीर्थंकर एवी त्रण महान पदवीना धारक हता.
बौंतेर हजार नगर, चोराशी लाख हाथी, छन्नुं हजार राणीओ अने छन्नुं करोड पायदळ–ईत्यादि छ खंडनी
विभूतिनो संयोग हतो, छतां अंर्तस्वभावमां भान हतुं के आ कोई मारुं स्वरूप नथी, आ बधो पुण्यनो ठाठ
छे तेमां क्यांय मारा आत्मानुं सुख नथी. भगवान जन्म्या त्यारथी ज तेमने आवुं आत्मज्ञान हतुं. पूर्व
भवोमां आत्मज्ञान पामीने तेमणे दर्शनमोहनो नाश कर्यो हतो पण हजी राग बाकी हतो, ते भूमिकामां जे पुण्य
बंधाया तेना फळमां बाह्यमां चक्रवर्ती वगेरे पदनो संयोग थयो. शुद्ध आत्मानी श्रद्धाना जोरे भव तन अने
भोगोथी उदासीनता तो प्रथमथी ज तेमने हती. हुं चैतन्यमूर्ति आत्मा असंसारी, अशरीरी अने अभोगी छुं;
भव तन के भोग ते हुं नथी, हुं तो भवरहित मुक्तस्वरूपी छुं, शरीररहित सिद्धसमान छुं अने भोगरहित
असंयोगी छुं; क्षणिक विकार के शरीरादि ते मारुं स्वरूप नथी. –आवा आत्मस्वभावना भानसहित भगवान
अवतर्या हता. ज्यांसुधी चक्रवर्तीपदे हता त्यांसुधी अस्थिरताना राग–द्वेष थता हता परंतु तेमने तेनी भावना
न हती, भावना तो आनंदमूर्ति आत्मस्वभावनी ज हती.
* भगवानने वैराग्य *
–एवा आत्मज्ञानी शांतिनाथ भगवान, चक्रवर्ती पदे हता त्यारे एकवार अरीसामां पोतानुं मुख जोता
हता; ते वखते अरीसामां पोताना एकसाथे बे प्रतिबिंब देखाया. तेमां तेमना पूर्वभवनुं प्रतिबिंब देखायुं हतुं.
ते जोतां ज तेओ आश्चर्यथी विचारमां पडी गया अने तेमने पोताना पूर्वभवोनुं स्मरण थई आव्युं. पूर्वभवनुं
स्मरण थतां ज तेमने संसार प्रत्ये अतिशय वैराग्य थयो अने अनित्य अशरण वगेरे बार
वैराग्यभावनाओनुं चिंतवन करवा लाग्या. अहो! मारो आत्मा शाश्वत चैतन्यघन अशरीरी छे, भोगरहित छे,
भवरहित छे, आनंदमूर्ति चैतन्य ए ज मारुं कायमी शरीर छे. –आवा आत्मानुं भान होवा छतां तेमां लीनता
वगर पूर्ण शांति नथी. भोगमां मारुं सुख नथी तेमज भोगनो राग मारा स्वरूपमां नथी, ते रागने छेदीने
चैतन्यना आनंदमां तरबोळ थाउं ते मारुं स्वरूप छे. अहो! हवे हुं मुनि थईने एवी दशा प्रगट करुं! –आ
प्रमाणे भगवान दीक्षा–भावना भावता हता.
ज्यां भगवान वैराग्यभावनानुं चिंतवन करता हता त्यां लौकांतिक देवो आव्या. तेमणे आवीने
भगवाननी स्तुति करी तथा तेमना वैराग्यनी प्रशंसा करीने पुष्टि करी. पछी ईन्द्र वगेरे देवोए आवीने
भगवानना दीक्षाकल्याणकनो महोत्सव ऊजव्यो अने भगवान स्वयं दीक्षित थया.
वैराग्य थया पछी तीर्थंकर भगवंतो तरत ज दीक्षा धारण करे छे. वैराग्य थया पछी पण भगवान लांबो
काळ गृहवासमां रहे अथवा तो वरसीदान देवा माटे एक वर्ष रोकाय–एम कदी बनतुं नथी. वैराग्य थया पछी
पण भगवान लांबो काळ गृहवासमां रोकाय–एम जेओ माने छे तेओए भगवानना उत्कृष्ट वैराग्यने
ओळख्यो नथी. जेम