Atmadharma magazine - Ank 114
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953).

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सोनगढ़ में श्री मानस्तंभ जिनबिंब प्रतिष्ठा–उत्सव पर
त्यागी वर्ग की ओर से
आध्यात्मिक–मर्मज्ञ श्री कानजी स्वामी के प्रति
आभार–प्रदर्शन
आपकी यथार्थ और अनुपम तत्त्वप्रतिपादन–शैली से हम
लोग अधिक प्रभावित हुए।
यहाँ आकर अनेक जैनसिद्धांत के गूढ़ रहस्यमय तत्त्वों को
स्पष्ट रीत से समझा।
आपके द्वारा दि०जैनधर्म की जो आशातीत उन्नति हुई और
होने की संभावना है वह जैनधर्म के इतिहासमें स्वर्णाक्षरों से
अमर लेखनी द्वारा अंकित करने योग्य है।
आपका पुनित जीवन सुव्यवस्थित एवं आध्यात्मिकता से
ओतप्रोत है; इस संबंध में अधिक कहना मानो आप की
गुरुता को सीमित करना है।
हम वह दिन देखने को उत्सुक हैं जब आप पूर्ण संयमी
बनकर हम लोगों के पथप्रदर्शक होंगे।
आप चिरायु होकर इस स्वर्णपुरी में दिव्य वीरवाणी की
अविरलधारा प्रवाहित करते रहें, जिस ज्ञानामृत का पान
कर तृष्णार्त्त मानवजगत अनंत शांति का पात्र हो–ऐसी हम
सब की आन्तरिक भावना है।
–आपके समागमेच्छुक
[१] क्षुल्लक पूर्ण सागर [२] क्षुल्लक आदिसागर [३] ब्र०
चांदमलः अधिष्ठाता पार्श्वनाथ दि० जैन विद्यालय–उदयपुर [४] ब्र०
दुलीचन्दः उदासीनाश्रम–ईन्दौर [५] ब्र० राजारामःसागर [६] ब्र०
छोटेलालः सागर [७] ब्र० गोरेलालः उदासीनाश्रम–ईन्दौर [८]
ब्र० जिनदासः उदासीनाश्रम–इन्दौर [९] ब्र० गुणधरलालः
कुरावली–मैनपुरी [१०] फतेहचंदः सहपुरा [११] ब्र० सूर्यपालः
भिण्ड [१२] ब्र० केशवलाल वासनाः चौधरी [१३] ब्र० चुन्नीलालः
सोनासन–ईडर [१४] ब्र० कुमेरदासःएटा [१५] ब्र० कपुरचन्दः
बडौत [१६] ब्र० रामचरनः रिठोरा [१७] पं० राजकुमार शास्त्रीः
गया–बिहार।
[यहां की समिति ने इस मांगलिक प्रसंग पर आमंत्रित
करके जो अपूर्व धर्मलाभ लेने का सुअवसर दिया है यह उनका
वात्सल्यभाव अति प्रशंसनीय हे]
[सोनगढ़ः ताः २६–३–५३]