Atmadharma magazine - Ank 114
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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ः १३४ःः मानस्तंभ–महोत्सव अंकः
निर्वाण कल्याणक (चैत्र सुद दसम, मंगळवार)
सवारमां निर्वाण कल्याणकनुं द्रश्य थयुं हतुं; ते वखते गीरनारजी सिद्धक्षेत्रनी सुंदर रचना थई हती. ए
गीरनारनी पांचमी टूंकेथी भगवान श्री नेमिनाथ प्रभु परम सिद्धपदने पाम्या. दूरदूरना यात्राळुओ आवीने ए
गीरनारजीनी यात्रा करी रह्या छे;–ए देखाव पण थयो हतो.
त्यारबाद पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन थयुं, भगवान कई रीते सिद्ध पद पाम्या ते गुरुदेवे समजाव्युं.
गुरुदेवनुं प्रवचन सांभळवा माटे भावनगरना महाराजा साहेब श्री कृष्णकुमारसिंहजी पधार्या हता. प्रवचन
सांभळीने पोतानो हर्ष व्यक्त करतां आदरपूर्वक तेमणे पू. गुरुदेवश्रीने कह्युं केः ‘आजना प्रवचनमां तो एकली
मलाई ज पीरसाती हती.’ तेम ज प्रतिष्ठा महोत्सवनी भव्यता जोईने तेमणे पोतानो हर्ष बताव्यो हतो. आ
उपरांत वलभीपुर–वळाना ठाकोरसाहेब श्री गंभीरसिंहजी पण पधार्या हता अने तेमणे पण पू. गुरुदेव प्रत्ये
पोतानो भक्तिभाव व्यक्त कर्यो हतो.
त्यारबाद प्रतिष्ठित प्रतिमाजीने मानस्तंभमां स्थापित करवा माटेनी ऊछामणी बोलाणी हती तेमां
भक्तजनोए खूब उल्लासपूर्वक भाग लीधो हतो. आ प्रसंगे प्रतिमाजीनी स्थापना, कलश–ध्वजारोहण तथा
रथयात्रानी ऊछामणीमां लगभग रूा. ३४०००) नी बोली थई हती.
बपोरे, प्रतिष्ठित भगवंतोने मानस्तंभमां बिराजमान करवा माटे भक्तजनो भक्तिपूर्वक मानस्तंभ
उपर ऊंचे ऊंचे लई जता हता ते वखतनुं अद्भुत द्रश्य पण जोवा जेवुं हतुं–जाणे भक्तोनी भक्तिथी प्रसन्न
थईने प्रभुजी पोते विहार करीने मानस्तंभ उपर पधारता होय!
मानस्तंभमां जिनबिंब–स्थापन
(चैत्र सुद १० बीजीः बुधवार ता. २प–३–प३)
आजे सवारमां ७–२० थी ७–पप सुधीना मंगलमुहूर्तमां पवित्र मानस्तंभमां उपर तेम ज नीचेनी
देरीमां चारे दिशामां विदेहीनाथ भगवान श्री सीमंधर प्रभुजीनी स्थापना पू. गुरुदेवश्रीना परम पवित्र
करकमळथी थई. गुरुदेवे भगवाननी प्रतिष्ठा अतिशय भावपूर्वक करी हती. पोताना सुहस्ते प्रभुजीने स्थापित
करता हता त्यारे खूब ज प्रसन्न–प्रसन्न देखाता हता.....जाणे साक्षात् सीमंधरभगवाननो अहीं भेटो थयो–तेनो
आनंद गुरुदेवना हैये समातो न हतो तेथी तेओ अत्यंत हर्षित थता हता. पहेलां मानस्तंभना उपरना भागमां
प्रतिमाजीनुं स्थापन थयुं हतुं....आकाशमां पू. गुरुदेव ज्यारे भगवानने स्थापित करी रह्या हता त्यारे नीचे
ऊभेला हजारो भक्तजनो ते पावनद्रश्य जोवा माटे खूब ज तलसी रह्या हता....मानस्तंभनी ऊंची ऊंची टोच
उपर बधायनी मीट मंडाई रही हती.....मानस्तंभमां ऊंचे प्रभुजीने बिराजमान करीने गुरुदेव नीचे पधारता
हता त्यारे जयजयकारपूर्वक भक्तो होंशथी तेओश्रीने वधावता हता. पछी गुरुदेवश्रीए पोताना पावन
करकमळथी मानस्तंभमां नीचेना भागनी देरीओमां प्रभुजीनुं स्थापन कर्युं. प्रभुजीने स्थापित करीने तरत खूब
ज आनंदपूर्वक तेओ भगवाननी निकटमां ज बेसी जता....सीमंधरभगवान साथे गुरुदेवना मिलननुं ए पावन
द्रश्य भक्तजनो आश्चर्यपूर्वक जोई रहेता.
–आ रीते पू. श्री कहानगुरुदेवना परम प्रतापे सुवर्णपुरीना उन्नत मानस्तंभमां महा मंगल–
महोत्सवपूर्वक सीमंधरभगवाननी प्रतिष्ठा थई...मानस्तंभमां बिराजमान सीमंधर भगवानने अत्यंत
भक्तिपूर्वक नमस्कार हो....जेमनी ऊंडी ऊंडी भक्तिना प्रभावे भगवान भरते पधार्या ते संतोने नमस्कार हो!
भगवाननी स्थापना थया पछी मानस्तंभमां बिराजमान सींमंधरभगवाननुं घणा घणा भक्तिभावथी
पूजन करवामां आव्युं हतुं, अने महान अभिषेक करवामां आव्यो हतो....खूब ज ऊंचे ऊंचे थई रहेलो ए
अभिषेक जोतां एवुं लागतुं हतुं के जाणे स्वर्गेथी ऊतरीने आकाशमां देवो भगवाननो अभिषेक करी रह्या होय!
त्यारबाद शांतियज्ञ करीने प्रतिष्ठा–महोत्सवनी पूर्णता थई हती. घणा ज आनंद–उल्लास अने
भक्तिपूर्वक धर्मप्रभावनानो आ भव्य महोत्सव पूर्ण थयो तेना हर्षमां छेल्ले मोटी रथयात्रा नीकळी हती. ए
भव्य रथयात्रामां श्री जिनेन्द्रदेव तथा तेमनी आसपासना भक्तिनां द्रश्यो अद्भुत हता. भगवाननी आगळ
आगळ हाथी उपर ऊंचे ऊंचे धर्मध्वज लहेरातो हतो ने हाथी उपर धर्मात्माओ बिराजता हता.–इत्यादि पावन