Atmadharma magazine - Ank 114
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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ः १३६ःः मानस्तंभ–महोत्सव अंकः
कल्याणक ऊजववानुं थता ते खास उल्लासपूर्वक ऊजवाया हता. पंचकल्याणकमां जे एक एकथी चडियाता द्रश्यो
थया ते तो नजरे नीहाळनार ज जाणे. अने तेनी साथे साथे पू. गुरुदेवश्रीना श्रीमुखथी जे अध्यात्मरसनी धारा
वहेती तेनो स्वाद तो साक्षात् सांभळनार ज जाणे. ए महान वस्तुने अहीं उतारवानुं सामर्थ्य आ नानकडी
कलममां कयांथी होय?
‘विदेहधाम’ नी शोभा अने गुरुदेवनो अद्भुत प्रभाव
ए दिवसोमां सुवर्णपुरीनी शोभा अद्भुत हती....तद्न नवी ज एक मोटी नगरी बनी गई हती. चारे
तरफ भव्य दरवाजा, बजार, ईलेकट्रीक–प्रकाश अने धजा–वावटा वगेरेथी आखी नगरी एवी शोभती हती के
जेम स्वप्नमां सुंदर नगरीनी रचना देखाय तेम अहीं तेवी नगरी साक्षात् देखाती हती–ए नगरीनुं नाम हतुं
‘विदेहधाम’.....अने विदेहनी जेम त्यां खरेखर धर्मकाळ वर्ततो हतो. जुदा जुदा देशना अनेक त्यागीओ,
विद्वानो वगेरे पांच–छ हजार उपरांत श्रोताओनी सभामां पण कयांय विरोधनुं नामनिशान जणातुं न हतुं.
आवो मोटो समुदाय होवा छतां गुरुदेवना प्रवचन समये आखुं वातावरण धीरगंभीर शांतिमय बनी रहेतुं; सौ
प्रसन्नतापूर्वक प्रवचन सांभळवामां मुग्ध बनी जता हता अने आश्चर्यथी डोली ऊठता के ‘अहो! आ ज खरुं
समजवानुं छे.’ गुरुदेवना प्रवचन सांभळवामां लोकोने एटलो बधो रस आवतो हतो के पंचकल्याणकना
अनेकविध कार्यक्रमोमां पण प्रवचन माटे तलसता अने वारंवार पूछता के
‘स्वामीजी का प्रवचन कब होगा?’
प्रवचन समयनी धर्मसभानुं भव्य वातावरण जोईने हृदय ठरतुं हतुं के अहो! गुरुदेवना प्रतापे धर्मकाळ वर्ती
रह्यो छे....सत्यना जिज्ञासु अनेक जीवो छे....अपूर्व आध्यात्मिक तत्त्वनुं प्रेमपूर्वक श्रवण करनार जिज्ञासु
जीवोनो आवो भव्य मेळो आ काळे अजोड हतो....सर्वत्र जैनधर्ममय वातावरण हतुं. घणा लोको एम कहेता के
अमे तो स्वर्गपुरीमां आव्या छीए, कोई कहेः अमे धर्मपुरीमां आव्या छीए, तो कोई कहे–अमे विदेहधाममां
आव्या होईए–एवुं लागे छे. ए रीते चारे तरफथी सर्व लोकोना मुखे आनंद–आनंदना ज सूर नीकळता हता.
खरेखर–
‘कल्याणकाळ प्रत्यक्ष प्रभु को लखें जे सुरनर घने,
तिह समयकी आनंदमहिमा कहत कयों मुखसों बने?’
–महोत्सव दरमियान गुरुदेवना प्रवचनो पण अद्भुत नीकळता हता.....प्रवचनमां तेमना आत्मानी
प्रसन्नता व्यक्त थती हती. महोत्सव दरमियान एक तरफथी पंचकल्याणकनां भव्य द्रश्यो भक्तिरसमां झुलावता
हता अने बीजी तरफ गुरुदेवना अद्भुत प्रवचनो शांतअध्यात्मरसमां झुलावता हता–आवा अपूर्व सुमेळथी
मुमुक्षुओ पोताने धन्य....धन्य...समजता हता.
‘विदेहधाम’ मां अंतर्गत बीजी अनेक नगरीओ पण हती, तेमां सौथी सुशोभित ‘सीमंधरनगर’ हतुं;
सीमंधरनगरमां ज भव्य प्रतिष्ठा–मंडप हतो ने त्यां अनेक जिनेन्द्रभगवंतो बिराजता हता. आ सिवाय
विजयानगरी, अयोध्यानगरी, सुसीमानगरी, पुंडरीकिणीनगरी, कुंदकुंदनगर, कहाननगर, वगेरेथी ‘विदेहधाम’
घणुं शोभतुं हतुं.
मानस्तंभनी यात्रा
प्रतिष्ठा पछी थोडाक दिवसो सुधी तो मानस्तंभनी यात्रा करवा माटे भक्तजनो खूब उल्लास अने
भक्तिपूर्वक उपर जता हता. सामान्य रीते घरना पगथियां पण मुश्केलीथी चढता होय एवी वृद्धावस्थावाळा
लोको पण अतिशय भक्तिने लीधे ठेठ मानस्तंभ उपर ऊंचेऊंचे होंशथी पहोंची जता हता. जाणे तीर्थनी यात्रा
करवा माटे डुंगर उपर जता होय–एवो ए देखाव हतो.
कोई कोई वार पूज्य गुरुदेव पण मानस्तंभ उपर पधारे छे. गुरुदेव ज्यारे मानस्तंभ उपर चडता होय
त्यारे गीरनारनी पांचमी टूंकनी यात्रा याद आवती. अने उपर ऊंचे ऊंचे सीमंधरभगवाननी सामे गुरुदेव बेठा
होय ते वखतनुं शांत–शांत वातावरण जोतां भक्तोना हृदय थंभी जता. गुरुदेवने पण त्यांथी नीचे आववानुं
मन थतुं न हतुं. ‘अहो! आ अतिशय उन्नत धर्मस्थंभ जोतां दिन दिन विशेष वृद्धिगत थई रहेलो गुरुदेवनो
धर्मप्रभाव ऊंचे चडी रह्यो छे.
आ मानस्तंभ ६३ फूट ऊंचो छे. आ संबंधमां एकवार प्रवचनमां पू. गुरुदेवश्रीए कह्युं हतुं के श्लाका
पुरुषोनी संख्या पण ६३ छे अने आपणो मानस्तंभ पण ६३ फूट ऊंचो छे. जेम ६३ श्लाका पुरुषो मोक्षनी
छापवाळा छे, तेओ निकट मोक्षगामी ज होय छे, तेओने