कल्याणक ऊजववानुं थता ते खास उल्लासपूर्वक ऊजवाया हता. पंचकल्याणकमां जे एक एकथी चडियाता द्रश्यो
थया ते तो नजरे नीहाळनार ज जाणे. अने तेनी साथे साथे पू. गुरुदेवश्रीना श्रीमुखथी जे अध्यात्मरसनी धारा
वहेती तेनो स्वाद तो साक्षात् सांभळनार ज जाणे. ए महान वस्तुने अहीं उतारवानुं सामर्थ्य आ नानकडी
कलममां कयांथी होय?
जेम स्वप्नमां सुंदर नगरीनी रचना देखाय तेम अहीं तेवी नगरी साक्षात् देखाती हती–ए नगरीनुं नाम हतुं
‘विदेहधाम’.....अने विदेहनी जेम त्यां खरेखर धर्मकाळ वर्ततो हतो. जुदा जुदा देशना अनेक त्यागीओ,
विद्वानो वगेरे पांच–छ हजार उपरांत श्रोताओनी सभामां पण कयांय विरोधनुं नामनिशान जणातुं न हतुं.
आवो मोटो समुदाय होवा छतां गुरुदेवना प्रवचन समये आखुं वातावरण धीरगंभीर शांतिमय बनी रहेतुं; सौ
प्रसन्नतापूर्वक प्रवचन सांभळवामां मुग्ध बनी जता हता अने आश्चर्यथी डोली ऊठता के ‘अहो! आ ज खरुं
समजवानुं छे.’ गुरुदेवना प्रवचन सांभळवामां लोकोने एटलो बधो रस आवतो हतो के पंचकल्याणकना
अनेकविध कार्यक्रमोमां पण प्रवचन माटे तलसता अने वारंवार पूछता के
रह्यो छे....सत्यना जिज्ञासु अनेक जीवो छे....अपूर्व आध्यात्मिक तत्त्वनुं प्रेमपूर्वक श्रवण करनार जिज्ञासु
जीवोनो आवो भव्य मेळो आ काळे अजोड हतो....सर्वत्र जैनधर्ममय वातावरण हतुं. घणा लोको एम कहेता के
अमे तो स्वर्गपुरीमां आव्या छीए, कोई कहेः अमे धर्मपुरीमां आव्या छीए, तो कोई कहे–अमे विदेहधाममां
आव्या होईए–एवुं लागे छे. ए रीते चारे तरफथी सर्व लोकोना मुखे आनंद–आनंदना ज सूर नीकळता हता.
हता अने बीजी तरफ गुरुदेवना अद्भुत प्रवचनो शांतअध्यात्मरसमां झुलावता हता–आवा अपूर्व सुमेळथी
मुमुक्षुओ पोताने धन्य....धन्य...समजता हता.
विजयानगरी, अयोध्यानगरी, सुसीमानगरी, पुंडरीकिणीनगरी, कुंदकुंदनगर, कहाननगर, वगेरेथी ‘विदेहधाम’
लोको पण अतिशय भक्तिने लीधे ठेठ मानस्तंभ उपर ऊंचेऊंचे होंशथी पहोंची जता हता. जाणे तीर्थनी यात्रा
करवा माटे डुंगर उपर जता होय–एवो ए देखाव हतो.
होय ते वखतनुं शांत–शांत वातावरण जोतां भक्तोना हृदय थंभी जता. गुरुदेवने पण त्यांथी नीचे आववानुं
मन थतुं न हतुं. ‘अहो! आ अतिशय उन्नत धर्मस्थंभ जोतां दिन दिन विशेष वृद्धिगत थई रहेलो गुरुदेवनो
धर्मप्रभाव ऊंचे चडी रह्यो छे.
छापवाळा छे, तेओ निकट मोक्षगामी ज होय छे, तेओने