मूंझाशो नहि. सत्य वस्तु शुं छे ते समजवानो हवे प्रयत्न करवो.’
लगभग बार हजार यात्राळुओनुं आगमन थयुं, अने एकएक यात्राळु गुरुदेवना धर्मप्रभावथी खूब ज
प्रभावित थया. आ रीते यात्राळुओ द्वारा गुरुदेवना परमपावन प्रभावनो संदेश भारतना खूणे खूणे पहोंची
गयो अने गुरुदेव द्वारा थती धर्मप्रभावनामां एक महान वेग मळ्यो. पू. गुरुदेव हवे मात्र सोनगढना ज के
सौराष्ट्रना ज नथी रह्या, परंतु तेओ भारतभरना दिगंबर जैन समाजनी एक महान विभूति छे.
पण पू. गुरुदेवना शासनने विशेष शोभावी रह्या छे. आ मानस्तंभनी शरूआतथी प्रतिष्ठा–महोत्सवनी पूर्णता
थई त्यां सुधीना नाना–मोटा समस्त कार्योमां तेओश्री (पू. बेनश्री–बेनजी चंपाबेन अने शांताबेने) जे
भावना....जे प्रेरणा अने जे लगनीपूर्वक दिनरात संभाळ करी छे तेनो उल्लेख शब्दो द्वारा थई शके तेम नथी.
तेओश्रीनी अत्यंत उल्लासवर्द्धक प्रेरणाए ज बधा कार्यकरोमां बळ पुरीने आ महान उत्सवने संपुर्णपणे
दीपाव्यो छे. मानस्तंभना कार्यमां तेम ज महोत्सवनी तैयारीमां अनेक महिनाओ सुधी बंने पवित्र बहेनोनी
अद्भुत लगनी अने अविरत कार्यशक्ति जोईने आश्चर्य ऊपजतुं हतुं. तेओश्रीना श्रीमुखेथी पंचकल्याणक
महोत्सव वगेरेना उल्लासमय संस्मरणो सांभळवा ते पण एक महान सौभाग्य छे.
प्रभावक श्री कहानगुरुदेवना प्रतापे स्थपायेल आ धर्मस्तंभ भव्यजीवोने जिनवैभव बतावतो थको जयवंत
वर्तो....अद्भुत आत्मवैभवना बळथी धर्मस्तंभ स्थापन करनार श्री कहानगुरुदेव जयवंत वर्तो. ‘हे
कल्याणमूर्ति गुरुदेव! तारो अद्भुत आत्मवैभव मारुं कल्याण करो!’
१ श्री शांतिनाथ भगवान......
हता; आ उपरांत लाडनूवाळा वछराजजी शेठे
पूज्य परमागम श्री समयसारना मूळ सूत्रो
चांदीमां कोतरावीने ते शास्त्रनी पण प्रतिष्ठा
करावी हती.