Atmadharma magazine - Ank 114
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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प्रथम वैशाखः २४७९ः १२३ः
तीर्थधाम सोनगढमां जैनधर्मप्रभावनो
भव्य महोत्सव
श्री मानस्तंभमां सीमंधर भगवाननी प्रतिष्ठाना पंचकल्याणक महोत्सवनां
* पवित्र संस्मरणो *
पू. गुरुदेवश्रीना अद्भुत प्रवचनोथी प्रभावित थयेल
समस्त दिगंबर जैन समाज अने त्यागीवर्ग
मंगलमूर्ति परम प्रभावी पू. सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामीनां पुनित प्रतापे जैनधर्मनो प्रभाव दिनदिन
वृद्धिगत थई रह्यो छे, तेना परिणामे सोनगढ एक तीर्थधाम बनी गयुं छे; अने तेमां पण भव्य मानस्तंभ थतां
तो तेनी शोभामां खूब ज वृद्धि थई छे. महाविदेहमां विचरता गगनविहारी सीमंधरनाथ भगवान आ
मानस्तंभमां बिराजमान छे. खरेखर, महाविदेहमां सीमंधर भगवान पोताना दिव्यध्वनि द्वारा जे धर्म प्ररूपी
रह्या छे ते ज धर्मना स्तंभ अहीं पू. गुरुदेवश्रीए रोप्यां छे,–एम आ मानस्तंभ सूचवी रह्यो छे. मानस्तंभनी
भव्यता नीरखतां भक्तजनोने अतिआनंद थाय छे अने अंतरमां एवी ऊर्मि जागे छे के अहो! जाणे
महाविदेहनो ज एक मानस्तंभ अहीं आव्यो होय! अने वळी मानस्तंभमां ऊंचे ऊंचे आकाशमां बिराजमान
सीमंधर भगवानने नीरखतां एवुं लागे छे के जाणे महाविदेहमां विचरी रहेला सीमंधर भगवान अहींथी
देखाता होय! आवा आ पावन मानस्तंभनी छायामां आवतां ज शांत....शांत ऊर्मिओथी हृदय अत्यंत
विश्रांति पामे छे.
मानस्तंभनो पूर्व ईतिहास
सोनगढमां मानस्तंभ कराववानी भावना तो खास खास भक्तोना हृदयमां दस–दस वर्षोथी घोळाया
करती हती; सं. १९९८ मां समवसरणनी प्रतिष्ठा थई त्यारथी ए विचारो चालता हता. गई सालना पोष
मासमां मानस्तंभ करवानो निर्णय थतां तरत ज भारतना विधविध स्थळोना भक्तजनोए मानस्तंभ माटे रूा.
एक लाख उपरांत फंड करीने ए निर्णयने ऊमंगपूर्वक वधावी लीधो....ने भक्तजनो ना अंतरमां दस दस वर्षथी
घूंटायेली भावना पूरी थवानो धन्य अवसर आव्यो.
श्री वृजलालभाई ईजनेर वगेरे साथे मानस्तंभनो ओर्डर आपवा माटे पवित्रात्मा पू. बेनश्रीबेन सं.
२००८ ना फागण सुद पांचमे जयपुर पधार्या अने फागण सुद चौदसे जयपुरना कारीगर मूलचंदजी रामचंदजी
नाठाने मानस्तंभनो ओर्डर अपायो.......
चैत्र सुद तेरसना मंगल दिने मानस्तंभनो पायो खोदवानी शुभ शरूआत थई.....वैशाख वद
सातमे घणा उल्लासपूर्वक मानस्तंभनुं शिलान्यास थयुं. शिलान्यास वखते तेम ज ज्यारे ज्यारे नवी
पीठिकाना चणतरनो प्रारंभ थतो त्यारे मंडळना बधा भक्तजनो हाथोहाथ चणतरकाम करीने पोतानो
उल्लास व्यक्त करता हता. ए वखते भक्तोने मानस्तंभनी लगनी लागी हती. मानस्तंभना वेगनना
समाचार आवतां आनंद फेलाई जतो. मानस्तंभना नाना मोटा दरेक सामानने भक्तजनो बहुमान पूर्वक
नीरखी नीरखीने जोतां