हता. इन्द्रोनी ऊछामणीमां रूा. २प०००) जेटली रकम थई हती. इन्द्रप्रतिष्ठा थया बाद पंचकल्याणक महोत्सव
करवा माटेनी आचार्यअनुज्ञानी विधि थई हती; तेमां पू. गुरुदेवश्रीए प्रसन्नतापूर्वक अक्षत छांटीने आज्ञा
आपी हती. आ मंगल आज्ञा बाद इन्द्रोए यागमंडलविधान पूजन कर्युं हतुं. यागमंडलविधानमां त्रणे
चोवीसीना तीर्थंकरो, वर्तमान विचरता सीमंधरादि तीर्थंकरो तेम ज पंच परमेष्ठी भगवंतोनी स्थापना करीने
तेमनुं पूजन करवामां आवे छे. पंचकल्याणकनां द्रश्योनी शरूआत आजथी थई हती. आजे रात्रे श्री नेमिनाथ
भगवानना गर्भकल्याणकनी पूर्वक्रियाना द्रश्यो थया हता. सौथी प्रथम मंगलाचरण तरीके सोनगढना ब्रह्मचर्य
आश्रमना कुमारिका बहेनोए नेमिनाथ भगवाननी नीचे मुजब स्तुति करी हती–
सूतां रे जागतां.....ऊठतां बेसतां, हैडे रहे तारुं खूब रटन......
सौधर्मेन्द्र सुवर्णमयी नगरी रचवानी कुबेरने आज्ञा करे छे तथा छप्पन कुमारिका देवीओने मातानी सेवामां
मोकले छे; देवो आवीने महाराजा समुद्रविजय तथा महाराणी शिवादेवीनुं सन्मान करे छे, तथा श्री, हीं वगेरे
आठ देवीओ मातानी सेवा करे छे–ए द्रश्य थयुं हतुं. आ आठ देवीओ तरीके सोनगढना श्राविका
ब्रह्मचर्याश्रमना बाल ब्रह्मचारी बहेनो हता.
खास जुदी ढबथी बताववामां आव्युं हतुं, स्वप्न कयांथी आवे छे ने कयां चाल्या जाय छे तेनी कोईने खबर
निर्मल निजातमगुण मनन कर पापताप शमन करूं;
अब रात्रि तम दिघटा सकल ह्यां प्राप्त होत सुकाल है,
चहुं ओर है भगवान सुमरण वृक्ष प्रफुलित पात है।
है समय सामायिक मनोहर ध्यान आतम कीजिये,
है कर्मनाशन समय सुन्दर लाभनिज सुख लीजिये।
स्वप्नोनुं फळ वर्णवीने महाराजा कहे छे के हे देवी! तमारी कुंखे महाप्रतापी श्री नेमिनाथ तीर्थंकरनो जीव आव्यो
छे. आ वात सांभळतां सभामां सर्वत्र आनंद फेलाई जाय छे, ईंद्र–ईंद्राणी आवीने वस्त्राभूषण वगेरेनी भेट
धरे छे ने स्तुति करतां कहे छे के हे रत्नकुंखधारिणी देवी! त्रिलोकनाथ तीर्थंकर तारी कुंखे पधार्या छे....त्रण
भेदविज्ञानसे आप पर जानती जैनसिद्धांतका मर्म पहचानतीं,
होत आहार, निहार नहीं धारती, वीर्य अनुपममहा देह विस्तारती;
मात शिवा महा मोक्ष अधिकारिणी, पुत्र जनती जिन्हें मोक्षमे धारिणी