Atmadharma magazine - Ank 114
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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प्रथम वैशाखः २४७९ः १२पः
हता. इन्द्रोनी ऊछामणीमां रूा. २प०००) जेटली रकम थई हती. इन्द्रप्रतिष्ठा थया बाद पंचकल्याणक महोत्सव
करवा माटेनी आचार्यअनुज्ञानी विधि थई हती; तेमां पू. गुरुदेवश्रीए प्रसन्नतापूर्वक अक्षत छांटीने आज्ञा
आपी हती. आ मंगल आज्ञा बाद इन्द्रोए यागमंडलविधान पूजन कर्युं हतुं. यागमंडलविधानमां त्रणे
चोवीसीना तीर्थंकरो, वर्तमान विचरता सीमंधरादि तीर्थंकरो तेम ज पंच परमेष्ठी भगवंतोनी स्थापना करीने
तेमनुं पूजन करवामां आवे छे. पंचकल्याणकनां द्रश्योनी शरूआत आजथी थई हती. आजे रात्रे श्री नेमिनाथ
भगवानना गर्भकल्याणकनी पूर्वक्रियाना द्रश्यो थया हता. सौथी प्रथम मंगलाचरण तरीके सोनगढना ब्रह्मचर्य
आश्रमना कुमारिका बहेनोए नेमिनाथ भगवाननी नीचे मुजब स्तुति करी हती–
तारुं जीवन खरुं.....तारुं जीवन, जीवी जाण्युं नेमनाथे जीवन.
सूतां रे जागतां.....ऊठतां बेसतां, हैडे रहे तारुं खूब रटन......
–इत्यादि स्तुति बाद स्वर्गमां सौधर्मेन्द्रनी सभानुं द्रश्य थयुं हतुं; भरतक्षेत्रना बावीसमा तीर्थंकर श्री
नेमिनाथ भगवान छ मास पछी शिवादेवी मातानी कूखे आववाना छे एम पोताना अवधिज्ञानथी जाणीने,
सौधर्मेन्द्र सुवर्णमयी नगरी रचवानी कुबेरने आज्ञा करे छे तथा छप्पन कुमारिका देवीओने मातानी सेवामां
मोकले छे; देवो आवीने महाराजा समुद्रविजय तथा महाराणी शिवादेवीनुं सन्मान करे छे, तथा श्री, हीं वगेरे
आठ देवीओ मातानी सेवा करे छे–ए द्रश्य थयुं हतुं. आ आठ देवीओ तरीके सोनगढना श्राविका
ब्रह्मचर्याश्रमना बाल ब्रह्मचारी बहेनो हता.
पछी रात्रे शिवादेवी माता शयन करी रह्या छे त्यारे तेमने बळद, हाथी, सिंह वगेरे १६ उत्तम मांगलिक
स्वप्नो आवे छे, माता एक पछी एक स्वप्नो देखी रह्यां छे,–ते द्रश्य अत्यंत आह्लादकारी हतुं. स्वप्नोनुं द्रश्य
खास जुदी ढबथी बताववामां आव्युं हतुं, स्वप्न कयांथी आवे छे ने कयां चाल्या जाय छे तेनी कोईने खबर
पडती न हती एटले ए स्वप्नो खरेखरा स्वप्न जेवा देखातां हतां.
गर्भ कल्याणक (शुक्रवार चैत्र सुद छठ्ठ)
माताए सोळ स्वप्नां देख्या पछी रात्रि पूरी थई ने प्रभात थतां कुमारिका देवीओ नीचे मुजब मंगल–
गीत द्वारा माताने जगाडे छे–
अरहंत सिद्धाचार्य पाठक साधुपद वंदन करूं,
निर्मल निजातमगुण मनन कर पापताप शमन करूं;
अब रात्रि तम दिघटा सकल ह्यां प्राप्त होत सुकाल है,
चहुं ओर है भगवान सुमरण वृक्ष प्रफुलित पात है।
है समय सामायिक मनोहर ध्यान आतम कीजिये,
है कर्मनाशन समय सुन्दर लाभनिज सुख लीजिये।
माता जागीने प्रथम पंच परमेष्ठीनी स्तुति करे छे ने पछी पोताना मंगलसूचक स्वप्नोनुं फळ जाणवा
माटे राजसभा तरफ जाय छे.
बीजी तरफ स्वर्गमां इन्द्रसभामां देवो गर्भकल्याणक ऊजववानी तैयारी करे छे–ए द्रश्य थयुं हतुं पछी
समुद्रविजय महाराजानी राजसभामां शिवादेवीमाता पधारे छे ने सोळ स्वप्नो कहीने तेनुं फळ पूछे छे. सोळ
स्वप्नोनुं फळ वर्णवीने महाराजा कहे छे के हे देवी! तमारी कुंखे महाप्रतापी श्री नेमिनाथ तीर्थंकरनो जीव आव्यो
छे. आ वात सांभळतां सभामां सर्वत्र आनंद फेलाई जाय छे, ईंद्र–ईंद्राणी आवीने वस्त्राभूषण वगेरेनी भेट
धरे छे ने स्तुति करतां कहे छे के हे रत्नकुंखधारिणी देवी! त्रिलोकनाथ तीर्थंकर तारी कुंखे पधार्या छे....त्रण
लोकना उत्तम रत्नने तें धारण कर्युं छे...तुं मात्र तीर्थंकरनी ज नहि पण त्रण लोकनी माता छे......
धन्य है धन्य है मात जिननाथकी, ईंद्रदेवी करें भक्ति भावां थकी;
भेदविज्ञानसे आप पर जानती जैनसिद्धांतका मर्म पहचानतीं,
होत आहार, निहार नहीं धारती, वीर्य अनुपममहा देह विस्तारती;
मात शिवा महा मोक्ष अधिकारिणी, पुत्र जनती जिन्हें मोक्षमे धारिणी
.
शिवादेवी मातानी सेवामां रहेली देवीओ माताने प्रसन्न राखवा अनेक प्रकारे सेवा करे छे अने प्रश्नो
पूछे छे, माता विद्वतापूर्वक तेना जवाब आपे छेः देवी पूछे छेः हे माता! जगतमां सारभूत रत्न कयुं छे?