Atmadharma magazine - Ank 115
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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द्वितीय वैशाखसंपादकवर्ष दसमुं
रामजी माणेकचंद दोशी
२४७९वकीलअंकः ८
हि तो प दे श
श्री मुनिराज निस्पृह
करुणाबुद्धिथी कहे छे केः अल्पकाळमां
जेमने भवरहित थवुं छे एवा निकट
भव्य जीवो आ शुद्धआत्मानो आदर
करो, तेनी ओळखाण करो, तेना
अनुभवनो अभ्यास करो. आ दुर्लभ
मनुष्यभवमां पण जो पोताना
शुद्धस्वभावने जाणीने तेनो आदर
नहि करो तो पछी फरीथी आवो
अवसर कयारे मळवानो छे?
–नियमसार प्रवचनोमांथी
छुटक नकल११पवार्षिक लवाजम
शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
चार आनात्रण रूपिया