
निर्विकल्प प्रतीतिने कोई रागनुं के निमित्तनुं अवलंबन नथी; केम के अनंतवार शुभ भावो कर्या छतां
चैतन्यवस्तु लक्षमां न आवी रागथी पार चैतन्यवस्तु कोई अंतरनी अपूर्व चीज छे, तेनी प्रतीत पण अपूर्व
अंतर्मुख प्रयत्नथी प्रगटे छे, कोई बहारनां कारणो के राग तेमां मदद करतां नथी. पूर्वे अज्ञानपणे अनंत
अनंतवार द्रव्यलिंगी साधु थई शुभभावथी नवमी ग्रैवेयक सुधी गयो छतां चैतन्य वस्तु ख्यालमां न आवी, तो
ते चैतन्य वस्तु रागना अवलंबनथी पार छे; कोई अपूर्व महिमावाळी अंतरनी वस्तु छे; अंतर्मुख ज्ञानथी ज ते
पकडाय तेवी ज छे.–आम एकांतमां विचारीने चैतन्य वस्तुने पकडवानो उद्यम करे छे. आ प्रमाणे अंतर्मुख उद्यम
करतां करतां थोडा काळमां ते जीव सम्यग्दर्शन पामी जाय छे.
सम्यग्दर्शनने सहज कह्युं छे–एम समजवुं. सम्यग्दर्शनमां स्वभाव तरफनो अपूर्व उद्यम तो छे ज. समयसारमां
आचार्यदेव कहे छे–हे जीव! तुं जगतनो व्यर्थ कोलाहल छोडीने अंतरमां चैतन्य वस्तुने अनुभववानो छ मास
प्रयत्न कर, तो तारा अंतरमां तने अवश्य तेनी प्राप्ति थशे. रुचिपूर्वक अंतरमां अभ्यास करे तो अल्पकाळमां
तेनो अनुभव थया विना रहे नहि. तेथी अपूर्व सम्यग्दर्शन प्रगट करवा माटे अंतरमां तत्त्वनिर्णय अने
अनुभवनो उद्यम करवो जोईए.
अत्यंत अध्यात्मलीन, वीतरागदर्शनना परम मर्मज्ञ, श्रुतज्ञानना महासागरसमा अने अनेक
लब्धिओना निवासभूत महा मुनि हता, तेमणे त्रिलोकपूज्य भगवान महावीरथी चाल्या आवता
मोक्षमार्गना बीजभूतज्ञानने परम पवित्र परमागमोमां संघरी राखीने भव्यजीवो पर अपार
उपकार कर्यो छे. तेओश्रीने भगवान महावीरनुं ज्ञान आचार्योनी परंपराथी मळ्युं हतुं एटलुं ज
नहि पण आठ दिवस सुधी महाविदेहवासी श्री सीमंधरभगवानना दिव्यध्वनिने साक्षात् श्रवण
करवानुं महासुभाग्य पण तेमने प्राप्त करनार भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे रचेलां अनेक शास्त्रोमांनुं
एक उत्तम आध्यात्मिकशास्त्र श्री नियमसार छे, तेमां परम शांतरसमय आध्यात्मिक गूढभावो
भर्या छे. नयाधिराज निश्चयनयनुं एमां अलौकिक निरूपण छे. शुद्धजीव, व्यवहारनिश्चयचारित्र,
निश्चयप्रतिक्रमण–प्रत्याख्यान–आलोचना–प्रायश्चित, परम समाधि, शुद्धोपयोग वगेरेनुं स्वरूप
एमां सुंदर रीते समजाववामां आव्युं छे के जेथी मुमुक्षुओनुं वलण क्षणिक भावो तरफथी छूटी
शुद्धद्रव्यसन्मुख थई निजानंदमां लीन थाय.
छे. तेमणे टीका करतां आध्यात्म रसने अद्भुत रीते घूंटयो छे; परणपारिणामिकभाव, कारण
परमात्मा वगेरेने अति अलौकिक रीते गाया छे. टीका गद्यरूप छे तेम ज तेमां अनेक आध्यात्मरस
झरतां मधुर पद्यो पण छे. टीकाकार मुनि भगवंते मूळ शास्त्रकारना आशयने अति स्पष्ट करी
परम उपकार कर्यो छे.