Atmadharma magazine - Ank 117
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष दसमुं, अंक दसमो, वीर सं. २४७९, अषाढ (वार्षिक लवाजम रूा. ३–०–०)
११७
: संपादक :
वकील रामजी माणेकचंद दोशी
दिव्यध्वनिी
अमोघ देशना
सौथी पहेलांं अषाड वद एकमे महावीरभगवाननो दिव्यध्वनि छूट्यो, ते
दिव्यध्वनिमां भगवाने एवी घोषणा करी के: हे जीवो! तमारे तमारुं कल्याण करवुं
होय तो आत्मस्वभावनो आश्रय करो; में स्वभाव–आश्रित पुरुषार्थ वडे
परमात्मदशा प्रगट करी छे, तमे पण तेवो स्वभाव–आश्रित पुरुषार्थ करो तो तमारी
परमात्मदशा प्रगटे. आत्मस्वभावनी आ वात जेने बेसे तेने धन्य छे.
स्वभावसन्मुख थईने जेना अंतरमां आ वात बेसे तेनुं अपूर्व कल्याण थई जाय.
भगवाननी आवी अमोघ देशना झीलीने अनेक भव्य जीवो स्वाश्रितभाव
प्रगट करीने मोक्षमार्गमां परिणम्या.