श्रुतज्ञान धरसेनाचार्यदेवने हतुं. तेओश्रीए, आ सौराष्ट्र देशमां नेमिनाथ भगवानना चरणथी पावन थयेल
गीरनारनी तीर्थभूमिमां, पुष्पदंत अने भूतबलि मुनिवरोने ते ज्ञान आप्युं. आचार्य श्री पुष्पईत अने
भूतबलि मुनिवरोए शास्त्ररचना करीने ते ज्ञानने लिपिबद्ध कर्युं. अने जेठ सुद पांचमे अंकलेश्वरमां महान
उत्सवपूर्वक चतुर्विध संघे ते श्रुतनी पूजा करी. –आ रीते महावीर भगवानना दिव्यध्वनिनो पवित्र अंश आजे
पण जळवाई रह्यो छे ते सुपात्र मुमुक्षुओनां महा सुभाग्य छे.
मानस्तंभनो महाअभिषेक तथा भक्ति थया हता. मानस्तंभ उपर जवा माटे जे पालख बांधेला हता ते हवे
छूटी गया छे, पालख छूटी जतां ऊंचा ऊंचा आकाशमां खुल्ला मानस्तंभनी अद्भुत शोभा जोतां आंखोने
तृप्ति ज थती नथी. मानस्तंभनो उपरनो देखाव असल भगवाननी गंधकुटी जेवो लागे छे. चारे बाजु
वादळांनी वच्चे मानस्तंभमां ऊंचे बिराजमान सीमंधर भगवानने नीरखतां एवुं अद्भुत द्रश्य लागे छे के
जाणे गगनमां भगवाननी गंधकुटी विहार करतां करतां अहीं आवीने थंभी गई होय!
वैभवने नीरखी रही होय! –एवो अलंकार करतां कवि भगवानदासजी कहे छे के–