Atmadharma magazine - Ank 117
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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अषाढ: २४७९ आत्मधर्म : १८३ :
[१]
• श्री जैनदर्शन शिक्षणवर्गनी परीक्षा •
[परीक्षामां पूछायेला प्रश्नो अने तेना जवाबो]
विद्यार्थीओने उनाळानी रजाओ दरमियान सोगनढमां दरवर्षे शिक्षणवर्ग
खोलवामां आवे छे. आ वर्ग खोलवानुं सं. १९९७ थी शरू करवामां आव्युं छे.
अनेक गामना विद्यार्थीओ होंशपूर्वक आ शिक्षणवर्गनो लाभ ले छे एटलुं ज
नहि पण साथे साथे मोटी उंमरना अनेक जिज्ञासुओ पण वर्गनो लाभ ले छे.
अने कोई कोई संस्था सोनगढनी शिक्षण–पद्धतिना अभ्यास माटे पोताना
शिक्षकोने सोनगढ मोकले छे. आ वर्षे शिक्षणवर्गमां बालवर्ग उपरांत पहेलो,
बीजो अने त्रीजो एम त्रण वर्ग राखवामां आव्या हता, ते त्रणे, वर्गनी
परीक्षामां पूछायेला प्रश्नो तथा तेना जवाबो अहीं आपवामां आवे छे.
–१–
प्र र् प्रश्न
विषय: छहढाळानी बीजी ढाळ:
जैनसिद्धांत प्रवेशिका: प्रश्न १ थी ४६
• प्रश्न: १ •
सात तत्त्वोनां नाम लखो अने मिथ्याद्रष्टि जीव ते सात तत्त्वोनी केवी केवी भूल करे छे ते स्पष्टताथी
जणावो.
• उत्तर: १ •
जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा अने मोक्ष ए सात तत्त्वो छे. मिथ्याद्रष्टि जीव ते सात
तत्त्वोनी भूल नीचे प्रमाणे करे छे:
(१) जीवतत्त्वन भल:
जीव तो ज्ञानस्वरूप त्रिकाळ छे तेने अज्ञानी जाणतो नथी अने शरीर ते ज हुं छुं, शरीर मारुं छे,
शरीरनां काम हुं करुं छुं––एम माने छे; तथा शरीर सारुं होय तो मने लाभ थाय, बहारनी सगवडताथी हुं
सुखी, बहारनी अगवडताथी हुं दुःखी, हुं गरीब, हुं राजा, हुं बळवान, हुं निर्बळ, मारी स्त्री, मारा छोकरां,
मारा पैसा, हुं कुरूप, हुं सुंदर–एम माने छे, ते जीवतत्त्वनी भूल छे.
(२) अजीवतत्त्वन भल:
मिथ्याद्रष्टि जीव मिथ्यादर्शननां प्रभावथी एम माने छे के शरीर उपजतां मारो जन्म थयो अने शरीरनो
नाश थतां हुं मरी जईश. ––आ अजीवतत्त्वनी भूल छे. शरीर तो अजीव छे, तेना उपजवाविनशवाथी जीव कांई
उपजतो के विनशतो नथी.
() ्रत्त् :
मिथ्यात्व, राग, द्वेष, क्रोध, मान वगेरे भावो आस्रव छे, ते भावो आत्माने प्रगटपणे दुःख देनारा छे, पण
मिथ्याद्रष्टि जीव तेम न मानतां, तेमने हितरूप जाणीने निरंतर तेनुं सेवन कर्या करे छे. –ते आस्रवतत्त्वनी भूल छे.