Atmadharma magazine - Ank 117
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: १८४ : आत्मधर्म: ११७
() त्त् :
जेम सोनानी बेडी तेम ज लोढानी बेडी बंने बंधनकारक छे, तेम पुण्य अने पाप बंने जीवने बंधनकारक
छे; पण मिथ्याद्रष्टि जीव तेम नहि मानतां पुण्यने सारुं ने हितकर माने छे; तत्त्वद्रष्टिए पुण्य अने पाप बंने
बंधनकारक ज छे पण अज्ञानी तेम मानतो नथी––ते बंधतत्त्वनी भूल छे.
() त्त् :
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र ते जीवने हितकारी अने सुखदायक छे, पण मिथ्यात्वने लीधे
मिथ्याद्रष्टि जीव ते सम्यग्दर्शन वगेरेने कष्टदायक अने दुःखरूप माने छे–ते संवरतत्त्वनी भूल छे.
() िर्त्त् :
आत्मामां एकाग्र थईने शुभ अने अशुभ बंने प्रकारनी ईच्छा रोकवाथी तप थाय छे, अने ते तपथी
निर्जरा थाय छे; आवो तप ते सुखदायक छे पण अज्ञानी तेने कलेशदायक माने छे अने आत्मानी ज्ञानादि
अनंतशक्तिने भूलीने पांच ईन्द्रियोना विषयोमां सुख मानीने तेमां ज प्रीति कर्या करे छे–ते निर्जरातत्त्वनी
भूल छे.
() क्षत्त् :
आत्मानी पूरेपूरी शुद्धदशाने मोक्ष कहे छे; ते मोक्षमां आकुळतानो अभाव छे, तेमां पूरेपूरुं स्वाधीन
निराकुळ सुख छे, पण अज्ञानीने ते मोक्षनुं सुख भासतुं नथी. अज्ञानी तो शरीरमां अने खावुं–पीवुं वगेरे
मोजशोखमां सुख माने छे, मोक्षमां शरीर, खावुं–पीवुं, पैसा–कुटुंब वगेरे कांई बहारमां होतुं नथी––तेथी ते
मोक्षनुं अतीन्द्रिय सुख अज्ञानीने भासतुं नथी;––आ मोक्षतत्त्वनी भूल छे.
––ए रीते आ सात तत्त्वोनी भूल करीने अज्ञानी जीव अनादिथी संसारमां रखडी रह्यो छे.
• प्रश्न: २ •
नीचेना पदार्थोनी व्याख्या लखो––
(१) अगृहीत मिथ्यादर्शन
(२) कुधर्म
(३) गृहीत मिथ्याज्ञान (४) अनेकान्त
(प) कुगुरु (६) गृहीत मिथ्याचारित्र
(७) सम्यग्दर्शन
• उत्तर: २ •
(१)
विपरीत श्रद्धा करतो आवे छे ते अगृहीत मिथ्यादर्शन छे.
(२) कुधर्म: मिथ्यात्व–राग–द्वेषरूपी भावहिंसा, तथा त्रसस्थावर जीवोना घातरूपी द्रव्यहिंसा, ––आ
बंने प्रकारनी हिंसाथी जे धर्म मनायो होय तेने कुधर्म कहे छे.
(३) गृहीत मिथ्याज्ञान: वस्तु अनेक धर्मवाळी एटले के अनेकान्तस्वरूप छे, छतां जे शास्त्रोमां
एकान्तवादनुं निरूपण कर्युं होय अने जे शास्त्रो मिथ्यात्वराग द्वेष तथा पांच ईन्द्रियना विषयोनुं पोषण करता
होय––एवां कुशास्त्रो एटले के कुगुरुना बनावेला खोटां शास्त्रोने हितरूप जाणीने तेनो अभ्यास करवो ते
गृहीत मिथ्याज्ञान छे.
(४) अनेकान्त: वस्तुमां नित्यपणुं तेम ज अनित्यपणुं वगेरे अनेक धर्मो एकसाथे रहेला छे एटले के
वस्तु अनेक धर्मस्वरूप छे, आवा वस्तुस्वरूपने ओळखवुं ते अनेकान्त छे.
(प) कुगुरु: जेना अंतरमां तो मिथ्यात्व–राग–द्वेष वगेरे होय अने बहारमां धन–वस्त्र–स्त्री वगेरे
परिग्रह होय, तथा पंचाग्नितप वगेरे करता होय–ते कुगुरु छे. आवा मिथ्याद्रष्टि कुगुरुओनी भक्ति–विनय के
पूजा वगेरे करवाथी गृहीत मिथ्यात्व थायण छे. कुगुरु ते पत्थरनी नौका समान छे. जेम पत्थरनी होडी पोते