Atmadharma magazine - Ank 117
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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अषाढ: २४७९ : १८५:
पाणीमां डूबे छे अने तेमां बेसनार पण डूबे छे, तेम कुगुरु पोते पण संसारमां डूबे छे ने तेने माननारा पण
संसारमां डूबे छे.
(६) गृहीत मिथ्याचारित्र–जेने आत्मा अने परवस्तुनुं भेदज्ञान नथी अने जगतमां प्रसिद्धि, लाभ,
मान, पूजा वगेरे माटे जुदा जुदा प्रकारनी अनेक क्रियाओ करीने शरीरने क्षीण करी नाखे छे तेने गृहीत
मिथ्याचारित्र कहे छे––जेम के: पंचाग्नितप तपे, धगधगता पतरा माथे सूए, जमीनमां दटाई रहे वगेरे.
(७) सम्यग्दर्शन–जीवादि सात तत्त्वोने ओळखीने तेनी यथार्थ प्रतीति करवी ते सम्यग्दर्शन छे. आवा
सम्यग्दर्शनथी ज धर्मनी शरूआत थाय छे, सम्यग्दर्शन वगर कदी धर्म थतो नथी.
• प्रश्न: ३ •
नीचेना शब्दोना शब्दार्थ लखो–
(१) वीतरागविज्ञान (२) कुबोध (३) श्रुत (४) भेदज्ञान (प) कुलिंग (६) भावहिंसा (७)
उपयोग (८) उपलनाव.
• उत्तर: ३ •
(१) वीतरागविज्ञान=राग द्वेषरहित एवुं केवळज्ञान.
(२) कुबोध=खोटुं ज्ञान; मिथ्याज्ञान.
(३) श्रुत=शास्त्र.
(४) भेदज्ञान=आत्मा अने पर वस्तुना जुदापणानुं यथार्थ ज्ञान.
(प) कुलिंग=खोटो वेष; खोटुं चिह्न.
(६) भावहिंसा=जेनाथी आत्माना गुण हणाय छे एवा मिथ्यात्व अने रागद्वेषना भावो.
(७) उपयोग=ज्ञान–दर्शननो वेपार अथवा देखवुं–जाणवुं ते.
(८) उपलनाव=पत्थरनी होडी.
• प्रश्न: ४ •
नीचेना पदार्थोनी व्याख्या लखो––
(१) गुण (२) धर्मद्रव्य (३) अगुरुलघुत्वगुण (४) आहारवर्गणा (प) ध्रौव्य (६) प्रमेयत्वगुण
(७) आहारक शरीर.
• उत्तर: ४ •
(१) गुण: द्रव्यना बधा भागमां अने तेनी सर्व हालतोमां जे रहे तेने गुण कहे छे.
(२) धर्मद्रव्य: स्वयं गतिरूपे परिणमता जीव अने पुद्गलोने गमन करती वखते जे उदासीन निमित्त
छे तेने धर्मद्रव्य कहे छे.
(३) अगुरुलघुत्वगुण: ते बधा द्रव्योमां रहेलो सामान्यगुण छे; आ अगुरुलघुत्वगुणने लीधे द्रव्यनी
द्रव्यता कायम रहे छे एटले के एक द्रव्य बीजा द्रव्यरूपे थई जतुं नथी, तेम ज एक गुण बीजा गुणरूपे थई जतो
नथी अने एक द्रव्यना अनंत गुणो विखराईने जुदा जुदा थई जता नथी.
(४) आहारवर्गणा: औदारिक, वैक्रियिक अने आहारक–ए त्रण शरीररूपे जे परिणमे तेने
आहारवर्गणा कहे छे.
(प) ध्रौव्य: वस्तुना कायम एकरूप टकता अंशने ध्रौव्य कहे छे; अथवा प्रत्यभिज्ञानना कारणभूत
वस्तुना नित्यस्वभावने ध्रौव्य कहे छे.
(६) प्रमेयत्वगुण: ते बधा द्रव्योमां रहेलो सामान्य गुण छे. आ प्रमेयत्वगुणने लीधे द्रव्य कोई ने कोई
ज्ञाननो विषय होय छे.
(७) आहारकशरीर: छठ्ठा गुणस्थानवर्ती कोई मुनिने, तत्त्वमां शंका उपजतां केवळी अथवा श्रुतकेवळी
समीप जवा माटे मस्तकमांथी जे एकहाथनुं पूतळुं नीकळे छे तेने आहारक शरीर कहे छे.
• प्रश्न: प •
नीचेना प्रश्नोना जवाब लखो––
(१) जीव शरीररूपे केम न थाय? (३) एक द्रव्यमां एकसाथे केटली अर्थपर्याय होय?
(२) पांच शरीरनां नाम लखो. (४) त्रिकाळ स्वभावव्यंजनपर्याय क्या क्या द्रव्योने होय?