Atmadharma magazine - Ank 118
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष दसमुं, अंक अगियारमो, श्रावण, सं. २००९ (वार्षिक लवाजम ३–०–०)
११८
: संपादक :
वकील रामजी माणेकचंद दोशी
अहो! सम्यग्दर्शन तो जगतमां अपूर्व अचिंत्य महिमावंत चीज छे; सम्यग्दर्शन
थतां ज आखुं परिणमन फरी जाय छे. जेने सम्यग्दर्शन थयुं तेना चैतन्य–आंगणे
मुक्तिना मांडवा नंखाया, तेना आत्मामां सिद्धभगवानना संदेशा आवी गया...एने
अनंत भवमां रखडवानी शंका टळी गई... अने अल्पकाळमां मुक्ति थवानो निःसंदेह
विश्वास प्रगट थयो. ––आवुं अपूर्व...परम...अचिंत्य सम्यग्दर्शन प्रगटवा माटे अंतरना
चिदानंद परमात्मतत्त्व सिवाय बीजा कोईनुं अवलंबन छे ज नहि. आ उपायथी जे
सम्यग्दर्शन प्रगट करे तेने अल्पकाळमां भवनो अभाव थई जाय.
–आवा सम्यग्दर्शनधारक संतोनी जगतमां बलिहारी छे!