Atmadharma magazine - Ank 118
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: २०२ : आत्मधर्म–११८ : श्रावण : २००९ :
नियमसार–प्रवचनो
भारतवर्षमां अध्यात्मजागृति फेलावनार, स्वरूपानुभवी,
अध्यात्मयोगी पू. गुरुदेवश्रीए, नियमसार उपर प्रवचनो द्वारा सूक्ष्म
अध्यात्मनी पराकाष्ठाभूत परमपारिणामिकभाव, शुद्धकारणपर्याय
वगेरेना परम गहन रहस्यो खोली अध्यात्मतृषित सुपात्र मुमुक्षुओ पर
उपकारनी अवधि करी छे. परम महिमावंत पारिणामिकभावनी
भावनाने आ प्रवचनोमां खूब खूब घूंटी छे. ए पारिणामिकभावनुं ऊंडुं
स्वरूप समजवा माटे आ प्रवचनो अति उपयोगी छे. आ प्रवचनोमां
परम प्रयोजनभूत शुद्धात्मदेवनो महिमा पू. गुरुदेवश्रीए घणी उच्च अने
घणी स्पष्ट शैलीथी गायो छे. जेने सुगुरुगमे शास्त्रोना मर्म उकेलवानी
द्रष्टि मळी चूकी छे एवा मुमुक्षुओने तो आ प्रवचनोनो स्वाध्याय अने
रटण करतां एम ज लागशे के जाणे पोते चैतन्यपरमात्माना दर्शन करवा
माटे अध्यात्मनी कोई ऊंडी–ऊंडी गुफामां ऊतरी रह्या होय! मुमुक्षुओ आ
प्रवचनोनो अतिशय एकाग्रताथी अभ्यास करी अंर्तगुफामां
बिराजमान चैतन्यदेवने देखो अने आत्मिक सुधारसने अनुभवो.
–नियमसार–प्रवचनो : प्रस्तावनामांथी.
भूल–सुधार
आ अंकमां पृष्ठ २२२ उपर “जैन अतिथि सेवा–समितिनी
वार्षिक बेठक”नी तिथि भादरवा सुद बीज, गुरुवार ता. १०–९–प३
छापवामां आवी छे तेने बदले भादरवा सुद एकम, बुधवार ता :– ९–९–
प३ सुधारी लेवा विनंति छे.
नम्र विनंति
महानुभाव!
आप जाणो छो के अत्यार सुधी “आत्मधर्म” अनेकान्त
मुद्रणालय मोटा आंकडियाथी छपाईने प्रगट थतुं हतुं. हवे ते मुद्रणालय
वल्लभ–विद्यानगर (गुजरात) लाववामां आव्युं छे. आ फेरबदलीने
कारणे श्रावण मासनो अंक वखतसर प्रगट करी शकायुं नहीं––ते बदल
क्षमा याचीए छीए.
भादरवा मासनो अंक वहेली तके प्रगट थशे.
: निवेदक :
जमनादास माणेकचंद रवाणी––
प्रकाशक.