: श्रावण : २००९ : आत्मधर्म–११८ : २०३ :
बाह्यसामग्री ते पूर्वना पुण्य–पाप कर्मनुं
फळ छे
अमुक जीवने लक्ष्मी मळे अमुक जीवने न मळे, अमुकने शरीरमां
रोग थाय ने अमुकने निरोगता रहे, –एम बहारमां जे लक्ष्मी वगेरे
सामग्रीनो संयोग–वियोग तथा सरोगता–निरोगता वगेरे थाय छे तेमां
पूर्वना पुण्य–पापनो उदय निमित्तरूप छे; जो कोई जीव ते कर्मने निमित्त
तरीके न स्वीकारे अने एम माने के ‘लक्ष्मी वगेरेनी जे असमानता छे ते
वर्तमान राज व्यवस्थानी खामीने लीधे छे, तथा सरोगता–निरोगता ते
आहार–विहारने लीधे छे’ –तो तेनी ते मान्यता आगमथी विरुद्ध छे.
अहीं आगमना अनेक आधारो आपीने ए वात सिद्ध करी छे के दरिद्रता
के लक्ष्मीवंतपणुं तथा रोग के निरोगता वगेरे बाह्यसामग्रीनो संयोग–
वियोग थवामां पूर्वना साता के असाता कर्मनो उदय निमित्तरूप छे,
पूर्वना शुभाशुभ कर्मना उदय अनुसार ज बाह्य सामग्रीनो संयोग–
वियोग थाय छे. आ लेखमां आपवामां आवेला बधाय अवतरणो मात्र,
‘बाह्य सामग्री ते पूर्वनां पुण्य–पापकर्मनुं फळ छे’ ––ए बाबत सिद्ध
करवा माटे ज आपवामां आव्या छे –ए वात दरेक वाचके लक्षमां राखवी.
‘
काणि पुण्य – फलाणि? तित्थयर –गणहर–रिसि
–चक्कवट्टि–बलदेव–वासुदेव–सुर–विज्जाहरिद्धीओ। ’
‘काणि पाव फलाणि? णिरय–तिरिय–कुमाणुस–जोणीसु
जाइ–जरा–मरण–वाहि–वेयणा–दालिद्दादीणि। ’
(हिंदी अर्थ) शंका–पुण्य के फल कौनसे हैं?
समाधानः–– तीर्थंकर, गणधर, ऋषि, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, देव और विद्याधरों की
ऋद्धियां पुण्य के फल हैं।
शंकाः– पाप के फल कौन से हैं?
समाधानः–– नरक, तिर्यंच और कुमानुष की योनियों में जन्म, जरा, मरण, व्याधि, वेदना और
दारिद्र आदि की प्राप्ति पाप के फल हैं।
[––ऋद्धिओनी प्राप्ति अने दरिद्रता वगेरे पुण्य–पापना फळ छे एम अहीं स्पष्ट कह्युं छे.)
श्री षट्खंडागम पु. ६, पृ ३६ मां कहे छे के––
‘दुक्खुवसमहेउसुदव्वसंपादणे तस्स वावारादो’ ××× ‘ण च सुह–दुक्खहेउदव्वसंपादयमण्णं
कम्ममत्थि त्ति अणुवलंभादो।’
(हिंदी अर्थ) दुःख–उपशमन के कारणभूत सुद्रव्यों के सम्पादन में सातावेदनीय कर्म का व्यापार
होता है। ××× सुख और दुःख के कारणभूत द्रव्यों का सम्पादन करने––