Atmadharma magazine - Ank 119
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपदसंपादकवर्ष दसमुं
रामजी माणेकचंद दोशी
२४७९वकीलअंकः १२
कल्याण माटे करवा जेवुं
अंतरमां हुं एक ज्ञानस्वभाव ज
छुं, शरीरादि ते हुं नथी ने राग मारुं
स्वरूप नथी, ज्ञानस्वभावमां ज मारुं
सर्वस्व छे–आवुं लक्ष थया विना
निश्चय–व्यवहारनी के उपादान–
निमित्तनी अनादिनी भूल टळे नहि,
अने ते भूल टळ्‌या विना बीजा गमे
तेटला उपाय करे तोपण कल्याण थाय
नहीं. माटे जेने आत्मानुं कल्याण करवुं
होय–धर्मी थवुं होय–तेणे आ वात
बराबर समजीने नक्की करवा जेवी छे.
–पू. गुरुदेव.
छुटक नकल११९वार्षिक लवाजम
शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
चार आनात्रण रूपिया