
छे, तेनी प्रतीत करीने तेना अवलंबने ज शांतिनो
अनुभव थाय छे, ए सिवाय बहारना बीजा लाखो
उपायथी पण जीवने साची शांति मळती नथी, केमके
आत्मानी शांति आत्माथी दूर नथी, शांतिनुं स्थान
आत्मामां ज छे. ज्ञानी तो आम जाणे छे तेथी
निजस्वभावनुं बहुमान चूकीने तेमने परनुं
बहुमान नथी आवतुं. ने अज्ञानी तो स्वभावनी
शांतिने जाणतो नथी तेथी बहारना पदार्थोनो
महिमा करवामां ते एवो एकाकार थई जाय छे के
जाणे त्यां ज आत्मानी शांति भरी होय, ने
आत्मामां तो जाणे कांई होय ज नहि! पण अरे
भाई! तारी शांति तो अहीं छे के त्यां छे? ज्यां
शांतिनो समुद्र भर्यो छे एवा पोताना स्वरूपने
भूलीने एकला परना बहुमानमां रोकाई जाय ने
तेमां ज संतोष मानी ल्ये तो तेने आत्मानी
शांतिनो जरापण लाभ थाय नहि, ने
संसारपरिभ्रमण मटे नहि. माटे अहीं तो आत्मानी
अपूर्व समजणनी वातने मुख्य राखीने ज बधी
वात छे, आत्मानी समजण ते ज शांतिनुं मूळ छे.