Atmadharma magazine - Ank 120
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: २६० : : आसो: २४७९
• अहो! मारा आत्मामां सर्वज्ञतानुं सामर्थ्य छे–एम जेणे प्रतीत करी तेणे ते प्रतीत पोतानी शक्ति
सामे जोईने करी छे के पर सामे जोईने करी छे? –आत्मानी शक्तिनी प्रतीत आत्माने ध्येय
बनावीने थाय के परने ध्येय बनावीने थाय? कोई निमित्त, राग के अधूरी पर्यायना लक्षे
पूर्णशक्तिनी प्रतीत थती नथी पण अखंड स्वभावना लक्षे ज पूर्णतानी प्रतीत थाय छे. स्वभावना
लक्षे पूर्णतानी प्रतीत करनारने क्यांय पण परना आश्रयथी लाभनी बुद्धि रहेती नथी.
× × ×
• अरिहंत भगवान जेवी आ आत्मानी सर्वज्ञशक्ति पोतामां भरी छे. जो अरिहंत भगवान सामे ज
जोया करे ने पोताना आत्मा तरफ वळीने निजशक्तिने न संभाळे तो मोहनो क्षय थाय नहि. जेवा
शुद्ध अरिहंत भगवान छे तेवो ज हुं छुं–एम जो पोताना आत्मा तरफ वळीने जाणे तो सम्यग्दर्शन
प्रगटीने मोहनो क्षय थाय छे. तेथी, परमार्थे अरिहंत भगवान आ आत्माना ध्येय नथी, पण अरिहंत
भगवान जेवा सामर्थ्यवाळो पोतानो आत्मा ज पोतानुं ध्येय छे. अरिहंतभगवाननी शक्ति तेमनामां
छे, तेमनी पासेथी कांई आ आत्मानी शक्ति आवती नथी; तेमना लक्षे तो राग थाय छे.
× × ×
• प्रभो! तारी चैतन्यसत्ताना असंख्यप्रदेशी खेतरमां अचिंत्य निधान भर्यां छे, तारी सर्वज्ञशक्ति
तारा ज निधानमां पडी छे, तेनी प्रतीत करीने स्थिरता द्वारा ते खोद तो तारा निधानमांथी सर्वज्ञता
प्रगटे.
× × ×
• जेम पूर्णताने पामेला ज्ञानमां निमित्तनुं अवलंबन नथी, तेम नीचली दशामां पण ज्ञान निमित्तने
लीधे थतुं नथी, एटले खरेखर पूर्णतानी प्रतीत करनारो साधक पोताना ज्ञानने परावलंबने मानतो
नथी, पण स्वभावना अवलंबने मानीने स्व तरफ वाळे छे.
× × ×
• सर्वज्ञशक्तिवाळा पोताना आत्मा सामे जुए तो सर्वज्ञता मळे तेम छे, पर सामे जोये आत्मानुं कांई
वळे तेम नथी. अनंतकाळ पर सामे जोया करे तोय त्यांथी सर्वज्ञता मळवानी नथी, ने निजस्वभाव
सामे जोईने स्थिर थतां क्षणमात्रमां सर्वज्ञता प्रगटी जाय तेवुं छे.
× × ×
• सर्वज्ञता प्रगट्या पहेलांं साधकदशामां ज आत्मानी पूर्ण शक्तिनी प्रतीत होय छे. पूर्ण शक्तिनी
प्रतीत करीने तेनो आश्रय लेवाथी ज साधकदशा शरू थईने पूर्णदशा प्रगटे छे.
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• ‘अहो! मारुं सर्वज्ञपद प्रगटवानी ताकात मारामां वर्तमान ज भरी छे’ –आम स्वभाव–सामर्थ्यनी
श्रद्धा करतां ज ते अपूर्व श्रद्धा जीवने बहारमां उछाळा मारतो अटकावी दे छे ने तेना परिणमनने
अंतर्मुख करी दे छे. स्वभावसन्मुख थया विना सर्वज्ञत्वशक्तिनी प्रतीत थाय नहि.
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• अंर्तमुख थईने सर्वज्ञत्वशक्तिनी प्रतीत करतां तेमां मोक्षनी क्रिया–धर्मनी क्रिया आवी जाय छे. जे
जीव स्वभावसन्मुख थईने तेनी प्रतीत करतो नथी अने निमित्तनी सन्मुखताथी लाभ माने छे ते
जीवने विषयोमांथी सुखबुद्धि टळी नथी ने स्वभावबुद्धि थई नथी.
(अनुसंधान जुओ पृष्ठ २६२ उपर)