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निश्चय – व्यवहार अने उपादान – निमित्त
आ निश्चय–व्यवहार अने उपादान–निमित्तनी वात खास प्रयोजनरूप
समजवा जेवी छे अने तेमां ज लोकोनी मोटी भूल छे,
तेथी व्याख्यानमां वारंवार तेनी स्पष्टता
करवामां आवे छे.
जेम निमित्तने लीधे कार्य थतुं नथी तेम व्यवहारना अवलंबनथी परमार्थ पमातो नथी. निमित्तने
लीधे कार्य थाय, अने व्यवहार करतां–करतां तेना अवलंबने निश्चय पमाई जाय–एम माननारा बंने एक
ज जातनी मान्यतावाळा मिथ्याद्रष्टि छे.
व्यवहारनुं अवलंबन करवाथी सम्यग्दर्शन थाय? –न थाय.
निमित्तनुं अवलंबन करवाथी सम्यग्दर्शन थाय? –न थाय.
जेम व्यवहारनय अनुसरवा योग्य नथी तेम निमित्त पण अनुसरवा योग्य नथी. व्यवहार अने
निमित्त बंने अभूतार्थ छे. निमित्तनो तो आत्मामां त्रिकाळ अभाव छे; अने व्यवहार एक समयपूरतो
पर्यायमां छे पण त्रिकाळी स्वभावमां तेनो अभाव छे;–आ रीते निमित्त अने व्यवहार बंने अभूतार्थ छे,
तेथी अनुसरवा योग्य नथी, तेमना उपर जोर आपवाथी सम्यग्दर्शन थतुं नथी. अनेक प्रकारना निमित्तो
अने व्यवहारो होय भले पण ते कोईना अवलंबने सम्यग्दर्शन थतुं नथी; भूतार्थस्वभावना अवलंबने
ज सम्यग्दर्शन थाय छे.
सम्यग्दर्शननो एक ज नियम छे के ज्यां–ज्यां सम्यग्दर्शन थाय छे त्यां त्यां उपादाननी ताकातथी
ज थाय छे, अने जेने–जेने सम्यग्दर्शन थाय छे तेने पोताना भूतार्थ स्वभावनी द्रष्टिथी ज सम्यग्दर्शन
थाय छे. अंतरमां ऊतरीने जे समये ज्ञायकस्वभावने द्रष्टिमां पकड्यो ते ज समये सम्यग्दर्शन छे, त्यां
बधाय निमित्तो ने व्यवहारो एककोर रही जाय छे एटले के ते बधायनुं अवलंबन छूटी जाय छे.
(–मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–महोत्सवना प्रवचनमांथी.)
(अनुसंधान पृष्ठ २६० थी चालु)
• स्वभावनी बुद्धिवाळो धर्मी जीव एम जाणे छे के माथुं कापनार कसाई के दिव्यवाणी संभळावनार
वीतरागदेव–ए बंने मारा ज्ञानना ज्ञेयो छे. ते ज्ञेयोने कारणे मने कांई नुकसान के लाभ नथी तेम ज
ते ज्ञेयोने कारणे हुं तेने जाणतो नथी. राग–द्वेष वगर समस्त ज्ञेयोने जाणी लेवानी सर्वज्ञशक्ति
मारामां छे. कदाच अस्थिरतानो विकल्प आवी जाय तो पण धर्मीने आवी श्रद्धा तो खसती ज नथी.
× × ×
• पोताना जे पूर्णस्वभावने प्रतीतमां लीधो छे तेना ज अवलंबनना बळे अल्पकाळमां धर्मीने पूर्ण
सर्वज्ञता खीली जाय छे.
जय हो ते सर्वज्ञतानो अने ते सर्वज्ञताना साधक संतोनो!