आत्मधर्म: १२०: : २६३ :
‘आत्मधर्म’ ना लेखोनी कक्कावारी
[वष दसम: अक १०९ थ १२०]
विषय अंक–पृष्ठ विषय अंक–पृष्ठ
• अ – अा – ई – ई – उ – अे – अो • ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? ’ (१३) १११–४७
अज्ञानी जीव शुं करे? ११९–२४७ ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? ’ (१४) ११२–६७
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी केटलीक शक्तिओ ‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? ’ (१प) ११३–९५
[समयसारनी ४७ शक्तिओ उपरनां प्रवचनो] आत्मानी अद्भुत शोभा ११७–१९८
(१२) प्रकाशशक्ति (१) १०९–९ आत्मानी वार्ता ११९–२४६
(१२) प्रकाशशक्ति (२) ११०–२७ आत्मानी शक्ति ११७–१९५
(१३) असंकुचितविकासत्त्वशक्ति (१) १११–५३ आत्मानी समजण ११९–२४६
(१३) असंकुचितविकासत्त्वशक्ति (२) ११२–७४ आत्मार्थी जीव हंमेशां स्वाध्याय–मनन जरूर करे ११२–७८
(१४) अकार्यकारणत्वशक्ति ११३–८७ आभार खास–१२२
(१प) परिणम्यपरिणामकत्वशक्ति ११४–१०८ आभार (प्रतिष्ठा–महोत्सव–प्रसंगे) खास–१३५
(१६) त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति ११४–११२ आभार–प्रदर्शन (त्यागी वर्ग की ओर से) खास–१३९
(१७) अगुरुलघुत्वशक्ति ११९–२४४ आ वचनामृतनुं पान करो ११४–१०२
अपूर्व कल्याण कोने प्रगटे? ११०–२६ आहारदान खास–१३१
अपूर्व भावना ११८–२२३ आहारदान–प्रसंगनुं काव्य खास–१३२
अपूर्व सम्यग्दर्शन थवानी रीत ११६–१६३ ईन्द्र–प्रतिष्ठा खास–१२४
अपूर्व सम्यग्दर्शन थवानी रीत अने सम्यग्द्रष्टिनी एक समयना कारणकार्यमां त्रण भेद ११०–३१
भवभ्रमणथी छूटकारानी निःशंकता ११९–२३१ ओ...सांवरिया नेमिनाथ! शाने गया गिरनार..खास–१२८
अम घेर प्रभुजी पधार्या (मोरबी) खास–१२२ (दीक्षाकल्याणक प्रसंगे राजीमतीनुं काव्य)
अम घेर प्रभुजी पधार्या (बोटाद) १२०–२६७ अंकन्यास विधान खास–१३२
अम घेर प्रभुजी पधार्या (वांकानेर) १२०–२६७ अंधकार अने प्रकाश १०९–१४
अरिहंतप्रभु प्रभुता बतावे छे ११०–३९ उपादाननी योग्यता ११९–२३३
अहो, अचिंत्य आत्मवैभव!! ११८–२१३ उपादानविधि निरवचन है निमित्त उपदेश ११९–२३३
अहो, सम्यग्दर्शन! ११८–२०१ • क – ख – ग •
अहो, सर्वज्ञतानो महिमा!! १२०–२५६ कल्याण माटे करवा जेवुं ११९–२२५
आ अंकनुं निवेदन खास–१२२ कल्याण माटे क्यां जवुं? १२०–२५४
आत्मधर्मना ग्राहकोने १२०–२६७ कानजीस्वामी के प्रति आभार–प्रदर्शन खास–१३९
‘आत्मधर्म’ ना पाछला वर्षनी फाईलो ११४–१०२ (प्रतिष्ठा–महोत्सव प्रसंगे त्यागी वर्गकी ओरसे)
आत्महित माटे संतोनी शिखामण ११६–१६५ कारण–कार्यभाव ११०–३०
आत्मधर्मना लेखोनी कक्कावारी १२०–२६३ कुदरतनो साथ खास–१३७
(वर्ष: दसमुं अंक १०९ थी १२०) कुंदकुंदप्रभुना आचार्यपद–आरोहणनो महोत्सव १११–४२
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय? ’ (१२) १०९–१३ केवळज्ञान ११५–१४२
(प्रवचनसारना परिशिष्ट उपरनां प्रवचनो)