Atmadharma magazine - Ank 120
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: आसो: २४७९ : २४७ :
• जाणनर स्वभव •
आत्मा जाणनार स्वभाव छे; जाणनार स्वभाव विकारनो के परनो कर्ता
नथी. हुं ज्ञानस्वरूप ज छुं, ज्ञान सिवाय बीजुं कांई मारुं कर्तव्य छे ज नहि;–आवो
ज्ञानस्वरूपनो निर्णय करवो तेमां अपूर्व पुरुषार्थ छे. आ वात पूर्वे अनंतकाळमां
जीवने बेठी नथी. अरे भाई! तुं तारा स्वभावनी वात सांभळ तो खरो. अंतरमां
अपूर्वता लावीने स्वभावना उत्साहपूर्वक सांभळ तो जरूर तारुं कल्याण थाय.
[धार्मिकोत्सवना प्रथम प्रवचनमांथी: वीर सं. २४७९ श्रावण वद १४: समयसार गा. ११६ थी १२०]


अनादिकाळथी अज्ञानी जीवो पोताना स्वभावने चूकीने, हुं परने परिणमावुं एवी मिथ्याभ्रांतिने लीधे
संसारमां रखडे छे. हुं ज्ञान–आनंदस्वभाव छुं–एवी द्रष्टि चूकीने, राग–द्वेष–दया–दान वगेरेना परिणाम ते ज हुं
छुं एम जे माने छे एटले के विकारने ज जे आत्मा माने छे, ते ज एम माने छे के हुं जडकर्मनो परिणमावनार
छुं. हुं ज्ञानस्वरूप छुं–एवी जेनी द्रष्टि छे ते जीव विकारनो कर्ता थतो नथी तेम ज जडनो कर्ता पोताने मानतो
नथी. अहो! हुं तो ज्ञानस्वरूप छुं–ए वात पूर्वे अनंतकाळमां एक सेकंड पण जीवने अंतरमां बेठी नथी. हुं ज्ञान
ज करनार छुं, राग वखते पण रागमां तन्मय थया विना हुं तेनो जाणनार छुं, विकारने हुं फेरवनार नथी तेम
ज शरीरादि परने पण हुं फेरवनार नथी. –स्वसन्मुख थईने ज्ञानस्वभावनो आवो अपूर्व निर्णय प्रगट करवो
ते ज धर्मनो साचो महोत्सव छे.
जुओ, अंतरमां आ देहथी भिन्न आत्मा छे, तेने कोईए बनाव्यो नथी, तेम ज तेनो कदी नाश पण
थतो नथी; ते स्वयंसिद्ध वस्तु छे, ने तेनो स्वभाव ‘ज्ञान’ छे. ज्ञान शुं करे?–के जाणे. जाणवा सिवाय बीजुं
ज्ञाननुं कार्य नथी. रागपर्यायने उत्पन्न करे एवो ज्ञाननो स्वभाव नथी. आवा ज्ञानस्वभावनो निर्णय थतां
आत्मा रागनो, कर्मनो अने शरीर वगेरेनो ज्ञाता ज रह्यो,–आनुं नाम प्रथम धर्म छे.
–आमां शुं करवानुं आव्युं?
–आमां ज्ञानस्वभावना निर्णयनो पुरुषार्थ करवानुं आव्युं. जाणनारे पोताना ज्ञानस्वभावने जाणीने
तेनो निर्णय कर्यो छे, ते ज आत्मानुं कार्य छे ने तेमां धर्मनो पुरुषार्थ छे. आ अंतरनो साचो पुरुषार्थ अज्ञानीने
देखातो नथी ने बहारनी क्रियामां आत्मानो पुरुषार्थ मानीने ते ऊंधी मान्यताथी संसारमां रखडे छे.
भाई! तुं ज्ञान छो. परनुं कार्य अने विकारनुं कार्य तो जे काळे जेम बनवानुं छे तेम बनशे ज, तुं तेमां
फेरफार करी शके तेम नथी. ते वखते ‘हुं ज्ञान छुं’ एवी द्रष्टि राखीने तुं तेनो जाणनार रहे; अने कां
अज्ञानभावे रागनुं कर्तापणुं मान. ‘हुं हतो तो राग थयो’ एटले के ज्ञानस्वभावना अस्तित्वने लीधे राग
थयो–एम जेणे मान्युं तेणे रागने ज पोतानुं कर्तव्य मान्युं छे, एटले के आत्माने ज्ञानस्वरूप नथी मान्यो पण
रागस्वरूप ज मान्यो छे; ‘राग ते मारुं कर्म अने हुं तेनो कर्ता’ एम राग साथे स्वभावनी एकता मानी, तेने
ज्ञाननी अरुचि अने रागनी रुचि छे, ते ज मोटो अधर्म छे. ‘हुं हतो तो शरीर चाल्युं, आत्मा छे तो भाषा
बोलाय छे, मारी हाजरीने लीधे परनां कार्य थाय छे, हुं हतो ने में विकार कर्यो तेथी कर्म बंधाया’ –आवा
प्रकारनी जेनी मान्यता छे तेने पर साथे एकत्वबुद्धि छे, वस्तुस्वभावनी तेने खबर नथी. ज्ञानी–धर्मात्मा तो
जाणे छे के हुं ज्ञान स्वभाव छुं, मारा ज्ञानस्वभावमांथी तो निर्मळपर्यायनी ज