समज्या वगर हुं संसारमां रखडयो ते स्वभावनी आ वात छे. –आम अंतरमां अपूर्वता लावीने, स्वभावना
उत्साहपूर्वक सांभळ तो तारुं कल्याण थाय. हे जीव! तारो तो ज्ञान–स्वभाव छे. जगतनी पर चीजो सौ
पोतपोताना स्वभावथी परिणमे छे तेमां ते शुं कर्युं? तुं तो जुदो रहीने जाणनार रह्यो. अज्ञानी जुदापणानुं
भान भूलीने, जाणनार न रहेतां मफतनो परनुं अभिमान करे छे. तुं तारा जाणनार स्वभावने परथी ने
विकारथी जुदो राख. ज्ञानावरणादि आठ कर्मोरूपे जड–पुद्गलो परिणमे छे तेओ पोतानी शक्तिथी स्वयं
परिणमे छे, जीवना विकारनी पण तेओ अपेक्षा राखता नथी, केम के वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती
नथी. आ महान सिद्धांत छे के जेनामां जे शक्ति स्वत: होय ते परनी अपेक्षा राखे नहि, अने जेनामां जे शक्ति
स्वत: न होय ते कोई बीजाथी थई शके नहि. बस! स्वतंत्र वस्तुस्वभाव छे. जीवनो ज्ञानस्वभाव छे तेथी ते
पोताना स्वभावथी ज ज्ञानरूपे परिणमीने जाणे छे, जाणवामां तेने बीजा कोईनी अपेक्षा नथी, तेम जड–
पुद्गलो पण पोताना परिणमनस्वभावथी ज कर्मरूपे परिणमे छे तेमां तेने बीजानी अपेक्षा नथी.
ए वात तो क्यां रही? पुद्गलमां ज्ञानावरणनो उदय होय, अहीं जीवनी पर्यायमां ज्ञाननी हीनता होय ने
सामे ज्ञानावरण बंधातुं होय,–त्यां ज्ञानावरणना उदयने लीधे अहीं ज्ञाननी हीनता थई–एम नथी, तेम ज
जीवनी पर्यायमां ज्ञाननी हीनताने कारणे ज्ञानावरणकर्म बंधायुं–एम नथी. दरेकनुं परिणमन स्वतंत्र
पोतपोताना कारणे छे. जीव ज्यारे ज्ञानीनी आसातना वगेरे विकारभाव करे त्यारे ते विकारना प्रमाणमां ज
ज्ञानावरणादि कर्म बंधाय छतां जीवे ते पुद्गलोने कर्मरूपे परिणमाव्या नथी; तो पछी बीजा पदार्थो–के जेओ
क्षेत्रे पण जीवथी जुदा छे तेमनुं कांई जीव करे ए वात तो क्यां रही? जगतनी बधी चीजो पोतपोताना कारणे
पलटे छे तेमां जीवनो अधिकार नथी. अरे जीव! तुं तो ज्ञान छो, ज्ञान ने आनंदरूपे परिणमवानो तारो
स्वभाव छे; विकारपणे परिणमवानो के परनुं कांई करवानो तारो स्वभाव नथी. आ समजीने तारा
ज्ञानस्वभावनी प्रतीत कर ने परनो अहंकार छोड, ते सुखी थवानो उपाय छे.
ताकात छे ते ज बफाय छे, कोरडुं मग बफाता नथी; तो पाणीए शुं कर्युं? तेम जगतमां तो अनंत परमाणुंओ छे
तेम ज धर्मास्तिकाय वगेरे पण छे, तेमांथी जे समये जे परमाणुंओमां कर्मपणे परिणमवानी ताकात छे तेटला
ज परमाणुंओ कर्मपणे परिणमे छे, बीजा नथी परिणमता. जो जीवना विकारने लीधे पुद्गलो कर्मरूपे परिणमता
होय तो जगतना बधा पुद्गलो कर्मरूपे केम न परिणमी गया? धर्मास्तिकाय कर्मरूपे केम न परिणम्युं? माटे
कर्मरूपे परिणमनारा पुद्गलो स्वतंत्रपणे ज कर्मरूपे परिणमे छे, जीव तेनो कर्ता नथी. आवी स्वतंत्रताने
स्वकार्या विना जीवने पोताना ज्ञानस्वभावनी प्रतीति थाय नहि, ज्ञानस्वभावनी प्रतीति वगर परनो अहंकार
टळे नहि ने निराकुळ सुख प्रगटे नहि. माटे आ समजीने ज्ञानस्वभवनी प्रतीत करवी ने परनो अहंकार छोडवो
ते सुखनो रस्तो छे.
हुं ज्ञानस्वरूप छुं, परनां काम मारां नथी ने राग मारुं स्वरूप नथी–आवुं जेने अंतरमां भान होय तेने बधाय
पडखानो विवेक होय छे, तेने अनंतो राग टळी जाय छे अने साचा देव–गुरु–शास्त्र केवा होय तेनी ओळखाण
सहित तेमना प्रत्ये विनय–बहुमान–भक्तिनो भाव आवे छे. साचा देव–गुरु–शास्त्रनो पण जेने निर्णय अने
बहुमान नथी तेनामां तो खरेखर जैनपणुं नथी. अहो! हुं