Atmadharma magazine - Ank 120
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म: १२०: : २५१ :
मुक्तजीवनी वाणीमां मुक्तिपंथनो उपदेश
[शांतिनाथ प्रभुए करेलो शांतिनो उपदेश]
[३]
[आत्मधर्मना “११९” मा अंकमां छपायेला लेखनो बाकीनो अंतिम भाग]
दिव्यध्वनि ए मुक्तजीवनी वाणी छे ने ते मुक्तिनो पंथ बतावनारी
छे. द्रव्य–गुण–पर्यायनी स्वतंत्रता समजीने, पर्याय अंतर्मुख थईने पोताना
द्रव्यनो आश्रय ल्ये ते ज मुक्तिनो पंथ छे. सर्वे भगवंतो आ रीते ज मुक्ति
पाम्या अने आवो ज मोक्षनो मार्ग तेमणे जगतने उपदेश्यो. जेम भगवान
मोक्ष पाम्या तेम तेमनी वाणीमां कहेला आ मार्गने समजीने जगतना जीवो
मोक्ष न पामे एम बने नहि. जे समजीने स्वाश्रय करे ते जरूर मोक्ष पामे...
जे समजे तेनी बलिहारी छे.
• मुक्त थनारनी ज वात •
भगवाननी दिव्यवाणीनो आशय भव्य जीवोने मोक्षमार्गमां लगाववानो छे एटले तेमां मुक्त थनारनी
ज वात छे. जे जीव स्वाश्रय करीने मोक्षमार्ग प्रगट नथी करतो तेने माटे भगवाननो उपदेश खरेखर छे ज
नहि. जे जीव पराश्रयपणुं छोडीने स्वाश्रये मोक्षमार्ग प्रगट करे छे ते ज भगवानना उपदेशने समज्यो छे अने
खरेखर तेने माटे ज भगवाननो उपदेश छे.
अनादिथी एकेक समय करीने गमे तेटलो काळ मलिनता सेवी छतां आत्मामां ते मलिनता एक समय
करतां गाढी थई नथी. अशुद्धतानो काळ लंबाय तेथी कांई अनेक समयनी अशुद्धता भेगी थईने तेनी पुष्टि थई
जाय–एम बनतुं नथी. ‘अनंतकाळ पहेलांं जे सिद्ध थया ते आत्माने ओछी मलिनता हती तेथी ते पहेलांं सिद्ध
थया, अने अत्यारे जे सिद्ध थाय ते आत्माने वधारे मलिनता हती तेथी ते पाछळथी सिद्ध थया’ –एम नथी.
अशुद्धतानो काळ लंबाय तेथी कांई अशुद्धतानी पुष्टि थई जती नथी, केम के पहेलां समयनी जे अशुद्धता हती ते
तो बीजा समये अज्ञानीने पण टळी ज जाय छे; पहेलां समयनी अशुद्धता कांई बीजा समयमां भळती नथी,
बीजा समयनी अशुद्धता नवी उत्पन्न थाय छे; ए रीते नवी–नवी अशुद्धता उत्पन्न थईने तेनो काळ लंबाय,
पण बे समयनी अशुद्धता भेगी थईने एक समयनी पर्यायमां तेनी उग्रतानी पुष्टि थाय–एम न बने. तेम ज
एक समयनी पर्यायनी अशुद्धता द्रव्य–गुणने कांई अशुद्ध करी नांखे एम पण न बने. द्रव्य–गुण तो बधा
आत्माने त्रिकाळ शुद्ध ज छे, मात्र पर्यायमां अशुद्धता छे. भगवाननी वाणी द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वरूप
बतावीने, द्रव्यना अवलंबने पर्यायनी अशुद्धतानो नाश करवानुं बतावे छे. धर्मी जाणे छे के मारा त्रिकाळ धु्रव
रहेनार पवित्र स्वभाव पासे एक समयनी पर्यायनुं विकारनुं जोर नथी, धु्रवस्वभावना सामर्थ्यनी महत्ता पासे
ते विकारनी महत्ता