Atmadharma magazine - Ank 121
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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स्वरूप ओळखे ते मिथ्याद्रष्टि रहे ज नहि.
*
*‘जे जाणतो अर्हंतने गुण, द्रव्य ने पर्ययपणे, ते जीव जाणे आत्मने, तसु मोह पामे लय खरे.’
*
*जेणे मोहनो क्षय करवो होय तेणे शुं करवुं? के अरिहंत भगवाननो आत्मा केवो छे,
तेमना गुणोनुं सामर्थ्य केवुं छे अने तेमनी केवळज्ञानादि पर्यायनुं शुं स्वरूप छे ते नक्की
करवुं; ते नक्की करतां पोताना आत्मानुं वास्तविक स्वरूप पण तेवुं ज परिपूर्ण छे एवी
सम्यक् प्रतीति थाय छे अने मोहनो नाश थई जाय छे.
*
*अहीं अरिहंत भगवान आ आत्माना ध्येयरूप–आदर्शरूप छे. जेम अरीसामां जोतां
पोतानी मुद्रा देखाय छे तेम अरिहंतभगवान आ आत्माना अरीसा समान छे, अरिहंत
भगवाननुं स्वरूप ओळखतां आत्मानुं परिपूर्णस्वरूप केवुं छे ते ओळखाय छे. अरिहंत
भगवानने जे केवळज्ञानादि प्रगटया छे ते प्रगटवानुं मारा आत्मामां सामर्थ्य छे, अने जे
रागादिभावो अरिहंत भगवानना आत्मामांथी टळी गया ते आत्मानुं खरुं स्वरूप नथी.
आ रीते अरिहंत भगवानने ओळखतां पोताना स्वभावसामर्थ्यनी प्रतीत थाय छे अने
विकारीभावोथी भेदज्ञान थाय छे.
*
*आचार्यदेव कहे छे के हे भाई! अमारे तने तारुं शुद्ध स्वरूप बताववुं छे; विकार के
अपूर्णता ते तारुं खरुं स्वरूप नथी, तारुं खरुं स्वरूप तो विकाररहित शुद्ध परिपूर्ण छे, –ते
अमारे दर्शाववुं छे. अने ए शुद्ध आत्मस्वरूपना प्रतिबिंब समान श्री अरिहंतभगवान
छे केम के तेओ सर्व प्रकारे शुद्ध छे.–माटे हे भाई! तुं अरिहंतभगवानना आत्माने
ओळख, अने तारा आत्माने पण तेवो ज जाण.
*
*आ आत्माने द्रव्य–गुण तो सदाय शुद्ध छे ने पर्यायनी शुद्धता नवी प्रगट करवानी छे.
पर्यायनी शुद्धता प्रगट करवा माटे द्रव्य–गुण अने पर्यायनी शुद्धतानुं स्वरूप केवुं छे ते
जाणवुं जोईए. अरिहंत भगवाननो आत्मा द्रव्य–गुण अने पर्याय त्रणे प्रकारे शुद्ध छे,
तेथी तेमना स्वरूपने जाणतां पोताना शुद्ध स्वभावनी प्रतीत थाय छे अने पर्यायमां
शुद्धता थवा मांडे छे.
*
*अरिहंत भगवाननो आत्मा परिस्पष्ट छे, सर्वप्रकारे चोख्खो छे, तेमने जाणतां एम थाय
छे के–अहो! आ तो मारा शुद्ध स्वभावनुं ज प्रतिबिंब छे, मारुं स्वरूप आवुं ज छे.–आम
यथार्थ प्रकारे आत्मस्वभावनुं भान थतां शुद्ध सम्यक्त्व प्रगट थाय छे.
*
*अरिहंत भगवानने रागनो अत्यंत अभाव थईने परिपूर्ण केवळज्ञान प्रगटी गयुं छे. ते
केवळज्ञानमां जे जणायुं ते फरे नहि;–आवो निर्णय करवामां भगवानना केवळज्ञाननी
प्रतीत आवी जाय छे, अने केवळज्ञाननी प्रतीत करतां पोतानुं परिपूर्ण ज्ञानसामर्थ्य केवुं
छे–ते पण प्रतीतमां आवी जाय छे, अने सम्यग्दर्शन थाय छे. आ रीते केवळज्ञाननो
यथार्थ निर्णय ते सम्यग्दर्शननुं कारण थाय छे.
*अरिहंत भगवानना निर्णयमां केवळज्ञाननो निर्णय आव्यो, केवळज्ञानना निर्णयमां
आत्माना ज्ञानस्वभावनो निर्णय आव्यो, अने ज्ञानस्वभावना निर्णयमां केवळज्ञान
सन्मुखनो अनंत पुरुषार्थ आव्यो.
*
कारतकः २४८० ः २१ः