निर्णय करतां आत्माना वास्तविक स्वरूपनी ओळखाण थईने सम्यग्दर्शन प्रगटे छे ने
मोहनो क्षय थाय छे. माटे हे जीवो! पुरुषार्थ वडे अरिहंत भगवानने ओळखो.
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*जे जीवे अरिहंत भगवानना परिपूर्ण सामर्थ्यने पोताना ज्ञानमां लीधुं तेणे पोताना
आत्मामां पण तेवा परिपूर्ण सामर्थ्यनो स्वीकार कर्यो अने तेनाथी ओछानो के विकारनो
निषेध कर्यो.
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*अरिहंत भगवानमां अने आ आत्मामां निश्चयथी तफावत नथी. तेथी जाणे अरिहंतना
आत्मानुं वास्तविक स्वरूप जाण्युं तेने एम थाय छे के ‘अहो! मारा आत्मानुं वास्तविक
स्वरूप पण आवुं ज छे, आ सिवाय बीजा विपरीतभावो ते मारुं स्वरूप नथी.’–आम
जाणीने पोताना आत्मा तरफ वळतां ते जीवना मोहनो नाश थई जाय छे.
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*अरिहंत भगवानने खरेखर कयारे जाण्या कहेवाय?–अरिहंत भगवानना द्रव्य–गुण–
पर्याय साथे पोताना आत्माने मेळवीने, जेवो अरिहंतनो स्वभाव तेवो ज मारो स्वभाव
एम जो निर्णय करे तो ज अरिहंत भगवानने खरेखर जाण्या कहेवाय. अने आ रीते
अरिहंत भगवानने जाणे तेने सम्यग्दर्शन थया विना रहे नहीं.
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*जेणे अरिहंत भगवानना द्रव्य–गुण–पर्यायने लक्षमां लीधा ते ज्ञानमां एवुं सामर्थ्य छे के
पोताना आत्मामांथी विकारनो अने अपूर्णतानो निषेध करीने परिपूर्ण स्वभाव
सामर्थ्यने स्वीकारे छे ने मोहनो क्षय करे छे.
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*जे जीव अरिहंत भगवानना आत्माने बराबर जाणे छे ते जीव पोताना चैतन्य
सामर्थ्यनी सन्मुख थईने सम्यग्दर्शन प्रगट करे छे;–एटले अरिहंत भगवानने जाणनार
जीव अरिहंतनो लघुनंदन थाय छे.
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*धर्मी जीवे पोताना हृदयमां अरिहंत भगवानने स्थाप्या छे, तेना अंतरमां केवळज्ञाननो
महिमा कोतराई गयो छे. अने आवुं परम महिमावंत केवळज्ञान प्रगटवानुं सामर्थ्य मारा
आत्मामां भर्युं छे–एवी तेने स्वसन्मुख प्रतीति वर्ते छे.
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*केवळज्ञाननो यथार्थ निर्णय करवानुं सामर्थ्य शुभ विकल्पमां नथी पण ज्ञानमां ज ते सामर्थ्य
छे. केवळज्ञाननो यथार्थ निर्णय करनारुं ज्ञान पोताना स्वभावसन्मुख थई जाय छे.
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*जे जीव अरिहंत भगवानना केवळज्ञाननो निर्णय करे ते जीव रागने आत्मानुं स्वरूप
माने नहि एटले रागथी धर्म थवानुं माने नहि;– केमके केवळज्ञानीने राग नथी अने जेवुं
केवळज्ञानीनुं स्वरूप छे तेवुं ज पोतानुं परमार्थ स्वरूप छे.
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*जे जीवो मात्र पोतानी कुळपरंपराथी ज अरिहंतदेवने महान माने छे, पण अरिहंत
भगवानना जीवनुं स्वरूप शुं छे ते ओळखता नथी तेमने मिथ्यात्व टळतुं नथी ने धर्म
थतो नथी. माटे अरिहंत भगवानना आत्मानुं वास्तविक स्वरूप शुं छे ते ओळखवुं
जोईए. अरिहंत भगवानना आत्मानुं वास्तविक
ः २०ः आत्मधर्मः १२१ः