Atmadharma magazine - Ank 121
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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तेमां जुदी ज जातनो पुरुषार्थ छे, ते अंतरक्रियामां स्वभावनो अपूर्व पुरुषार्थ छे.
अनादिना भवसागरनो अंत आवा अपूर्व पुरुषार्थथी ज थाय छे. जो स्वभावना अपूर्व
पुरुषार्थ वगर ज भवसागरथी तरी जवातुं होत तो तो बधाय जीवो मोक्षमां चाल्या
जात!–पण स्वभावना अपूर्व प्रयत्न वगर आ समजाय एम कदी बनतुं नथी, अने आ
समज्या वगर कदी कोई जीवना भवभ्रमणनो अंत आवतो नथी. माटे अंतरनी रुचि
अने धीरजपूर्वक स्वभाव समजवानो उद्यम करवो जोईए.
*
*भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेव सम्यग्दर्शननो अपूर्व उपाय बतावतां भव्य जीवने कहे छे केः
हे भव्य! तुं अरिहंत भगवानना शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायने ओळख....ते ओळखतां तने
तारा आत्मानी खबर पडशे के ‘हुं पण अरिहंतनी ज जातनो छुं, अरिहंत भगवंतोनी
पंक्तिमां बेसुं एवो मारो स्वभाव छे.’–आम आत्मस्वभावने ओळखीने तेमां एकाग्र
थतां अपूर्व सम्यग्दर्शन थशे.
*
*पहेलामां पहेलुं शुं करवुं तेनी आ वात छे. अनादिना अज्ञानी जीवने नानामां नानो
जैनधर्मी बनाववानी एटले के अविरत सम्यग्द्रष्टि थवानी आ वात छे. मुनि के श्रावक
थया पहेलां केवी श्रद्धा होवी जोईए तेनी आ वात छे. आ सम्यक्श्रद्धारूपी भूमिका वगर
व्रत–पडिमा के मुनिपणुं कांई साचुं होतुं नथी. हजी वस्तुस्वरूप शुं छे ते समज्या वगर
उतावळा थईने बाह्य त्याग करवा मांडे ने पोताने मुनिपणुं वगेरे मानी ल्ये तेने तो
धर्मनी रीतनी के धर्मना क्रमनी खबर नथी.
*
*जेणे अंतरमां पोताना आत्मस्वभावनुं भान कर्युं छे तेने ते भान सदाय वर्त्या ज करे छे.
आत्माना विचारमां होय त्यारे ज सम्यग्दर्शन रहे अने बीजा विचारमां होय त्यारे
सम्यग्दर्शन चाल्युं जाय–एम नथी. समकीतिने शुभ–अशुभ उपयोग वखते पण
आत्मभान भूलातुं नथी, सम्यग्दर्शन छूटतुं नथी तेम ज दुषित पण थतुं नथी; क्षणे क्षणे
तेने सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान वर्त्या ज करे छे–आत्मा ज ते रूपे परिणमी गयो छे. आत्मानुं
भान थया पछी ते गोखवुं न पडे–याद राखवुं न पडे, पण आत्मामां तेनुं सहज
परिणमन थई जाय छे, ऊंघमां पण आत्मभान भूलातुं नथी. आ रीते धर्मीने चोवीसे
कलाक सम्यग्दर्शनरूप धर्म थया ज करे छे. आवुं आत्मभान प्रगट करवुं ते ज जीवनमां
सौथी प्रथम करवानुं छे.
*
*आ तो आत्मानी मुक्ति मळे तेवी वात छे, ते समजवा माटे अंतरमां होंस अने उत्साह
जोईए. पैसामां सुख नथी छतां पैसा मळवानी वात केवी होंसथी सांभळे छे! तो आत्मा
समजवा माटे अपूर्व होंसथी आत्मानी दरकारपूर्वक अभ्यास करवो जोईए. सत्समागमे
परिचय कर्या वगर उतावळथी आ वात समजाई जाय एम नथी. ‘आ ज मारे करवा
जेवुं छे’ एम धीरो थईने आ वात पकडवा जेवी छे.
*
*अरिहंत भगवानना द्रव्य–गुण–पर्यायनो निर्णय पुरुषार्थवडे थाय छे; अने तेनो
कारतक २४८०ःः १९ः